बाघा सीमा पर एक शाम
अमृतसर से 28किमी दूर भारत पाक सीमा बाघा पर होने वाली सैनिक परेड को देख मन प्रसन्न हुआ। देशप्रेम और भाईचारे का सन्देश देती इस परेड को निहारने वाले दोनों देश के लोग किसी मायने में एक दूसरे के दुश्मन नजर नहीं आए।
हमारी देश के सीमा सुरक्षा बल के सैनिक और पाक के रेंजर एक लय और ताल में परेड कर अपने अपने राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान दे रहे थे। दोनों देश के लोग तालियाँ बजाकर स्वतःस्फूर्ति देशप्रेमपरक सांस्कतिक आयोजन का तुत्फ ले रहे थे।
बाघा सीमा पर इस रंगारंग व विलक्षण आयोजन का प्रचलन पुराना है दोनों देशों के हजारों लोग प्रतिदिन बाघा सीमा पर इकट्ठे होते हैं तब किसी के हृदय में एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना पैदा नहीं होती बल्कि हम सोचने पर मजबूर होते हैं कि भारत जैसे देश का बटबाराा 1947 में क्यों हुआ। यदि शातिर अंग्रेजों के कारण ऐसा हुआ तो अब हम अमन-चैन से क्यों नहीं रह पाते। क्यों भारत-पाक युद्व हुआा क्यों कारगिल की लड़ाई हुई। क्यों मुंबई पर आतंकी हमला होता है और क्यों संसद पर हमला और क्यों नहीं सुलझने का नाम ले रही कशमीर की समस्या!
सीमा पर पहुंचने के लिए लगाए गए प्रवेश द्वार को पार करते वक्त एक बस ने हार्न बजाया। अरे यह क्या! यह बस लाहौर-दिल्ली के बीच चलने वाली बस थी। यह बस सेवा 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के समय में प्रारम्भ हुई थी। इस सेवा के प्रथम दिन का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर मैं मथुरा में अपने घर पर देख रहा था। टीवी पर लाइव प्रोग्राम देख मेरी आंखे नम हो गई थीं। अटल जी ने लाहौर जाने वाली बस को हरी झण्डी दिखाई थी। मुझ पर रूका नहीं गया और एक कविता अटलजी के इस अच्छे प्रयास को समर्पित कर दी। यह बात अलग है कि उन्ही के काल में कारगिल की लड़ाई हुई तो अटलजी का व्यक्तित्व सवालिया निशानों से घिर गया।
कविता इस प्रकार है
- अटल तुम्हारे चरण कहाँ है, छूने को मन करता है
सरहद के उस पार खड़े तुम, जनजन वन्दन करता है।
पाँच दषक की घृणा-वितृष्णा, छूमंतर क्षंणभर में कर दी
ज्ञान ज्योति गौतम गांधी जी, सबके जनमानस में भर दी।
बस बस बहुत हो चुका कहकर, जाकर सरहद पर बस कर दी
इस बस में अब फूल खिलेंगे, अपनेपन की खुषबू भर दी
उज्जवल यह आचरण तुम्हारा, कलुष हृदय का हरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है छूने का मन करता है
बन्द पड़ी इस सीमा पर अब बस के पहिए गुजरेंगे
सूने पड़े हाषियों पर भी मंगल स्वास्ति चिन्ह उभरेंगे
बन्दूकें फेंकी जाएंगी, सुमन शांति के मुस्कायेंगे
भाई-भाई रहे, रहेंगे सारे जग को बतलायेंगे
षान्ति संकल्प तुम्हारा मन में दीपक आषा के धरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है छूने को मन करता है
बर्लिन की दीवार बना था, अविष्वास अब ढहता है
हाथ मिल ेअब गले मिलेंगे, मन अपना यह कहता है
आरोपों का अन्त हुआ अब, सब जनमानस उत्साहित है
दोषारोपण खत्म हुए लो, शुभ पंथ आलोकित है।
सुंखद शांति परचम लहराया, यष हर और बिखरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है, छूने को मन करता है
अमृतसर से 28किमी दूर भारत पाक सीमा बाघा पर होने वाली सैनिक परेड को देख मन प्रसन्न हुआ। देशप्रेम और भाईचारे का सन्देश देती इस परेड को निहारने वाले दोनों देश के लोग किसी मायने में एक दूसरे के दुश्मन नजर नहीं आए।
हमारी देश के सीमा सुरक्षा बल के सैनिक और पाक के रेंजर एक लय और ताल में परेड कर अपने अपने राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान दे रहे थे। दोनों देश के लोग तालियाँ बजाकर स्वतःस्फूर्ति देशप्रेमपरक सांस्कतिक आयोजन का तुत्फ ले रहे थे।
बाघा सीमा पर इस रंगारंग व विलक्षण आयोजन का प्रचलन पुराना है दोनों देशों के हजारों लोग प्रतिदिन बाघा सीमा पर इकट्ठे होते हैं तब किसी के हृदय में एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना पैदा नहीं होती बल्कि हम सोचने पर मजबूर होते हैं कि भारत जैसे देश का बटबाराा 1947 में क्यों हुआ। यदि शातिर अंग्रेजों के कारण ऐसा हुआ तो अब हम अमन-चैन से क्यों नहीं रह पाते। क्यों भारत-पाक युद्व हुआा क्यों कारगिल की लड़ाई हुई। क्यों मुंबई पर आतंकी हमला होता है और क्यों संसद पर हमला और क्यों नहीं सुलझने का नाम ले रही कशमीर की समस्या!
सीमा पर पहुंचने के लिए लगाए गए प्रवेश द्वार को पार करते वक्त एक बस ने हार्न बजाया। अरे यह क्या! यह बस लाहौर-दिल्ली के बीच चलने वाली बस थी। यह बस सेवा 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के समय में प्रारम्भ हुई थी। इस सेवा के प्रथम दिन का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर मैं मथुरा में अपने घर पर देख रहा था। टीवी पर लाइव प्रोग्राम देख मेरी आंखे नम हो गई थीं। अटल जी ने लाहौर जाने वाली बस को हरी झण्डी दिखाई थी। मुझ पर रूका नहीं गया और एक कविता अटलजी के इस अच्छे प्रयास को समर्पित कर दी। यह बात अलग है कि उन्ही के काल में कारगिल की लड़ाई हुई तो अटलजी का व्यक्तित्व सवालिया निशानों से घिर गया।
कविता इस प्रकार है
- अटल तुम्हारे चरण कहाँ है, छूने को मन करता है
सरहद के उस पार खड़े तुम, जनजन वन्दन करता है।
पाँच दषक की घृणा-वितृष्णा, छूमंतर क्षंणभर में कर दी
ज्ञान ज्योति गौतम गांधी जी, सबके जनमानस में भर दी।
बस बस बहुत हो चुका कहकर, जाकर सरहद पर बस कर दी
इस बस में अब फूल खिलेंगे, अपनेपन की खुषबू भर दी
उज्जवल यह आचरण तुम्हारा, कलुष हृदय का हरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है छूने का मन करता है
बन्द पड़ी इस सीमा पर अब बस के पहिए गुजरेंगे
सूने पड़े हाषियों पर भी मंगल स्वास्ति चिन्ह उभरेंगे
बन्दूकें फेंकी जाएंगी, सुमन शांति के मुस्कायेंगे
भाई-भाई रहे, रहेंगे सारे जग को बतलायेंगे
षान्ति संकल्प तुम्हारा मन में दीपक आषा के धरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है छूने को मन करता है
बर्लिन की दीवार बना था, अविष्वास अब ढहता है
हाथ मिल ेअब गले मिलेंगे, मन अपना यह कहता है
आरोपों का अन्त हुआ अब, सब जनमानस उत्साहित है
दोषारोपण खत्म हुए लो, शुभ पंथ आलोकित है।
सुंखद शांति परचम लहराया, यष हर और बिखरता है
अटल तुम्हारे चरण कहां है, छूने को मन करता है