Friday, August 12, 2011

मेलबर्न आजकल

हमलों  की धमक थमने के बाद मेलबर्न  
 डेड वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया का शहर मेलबर्न समाचारपत्रों में खूब सुर्ख़ियों में रहा. इस खूबसूरत शहर में रहने वाले भारतीय छात्रों पर किये गए जानलेवा हमलों की खबरों से रंगभेद के सर उठाने की चर्चा गर्म हो गयी. सेंकडों देशवाशियों ने यहाँ. रह रहे अपने लाडलों को वापस बुला लिया या उन्हें सावधानी से रहने की सक्त हिदायतें दी. मेलबर्न से आयीं खबरों ने भारत सरकार पर दबाब बनाया की वह आस्ट्रेलिया सरकार से दो टूक बात करे. विक्टोरिया सरकार के हाथ के तोते उड़ गए . सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि की चिंता के साथ पर्यटन के धंधे पर चोट पड़ती दिखाई दी..ऐसा हुआ भी. भारतीय छात्रों के साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या गिरी. अपने देश में दहशत का माहोल पैदा करने वाले इन हमलो से पूर्व मैं मेलबर्न के दो चक्कर लगा चुका था.तब में नितांत अकेला इस शहर की खूबियों को अपनी नज़रों में केद करता फिरता था. अपनी काली काया पर किसी गोरे रंग का कोई खोफ था और कोई दहशत .दो दो माह के दो प्रवास में मैं रेल, बस, ट्राम मैं घूमता,जगह जगह दिखाई देते समुद्र में अठखेलियाँ करती उन्मुक्त लहरों को निहारता.अनजान देश की जीवन शेली, खानपान,भाषा इतिहास अदि को जानते वक्त गोरे काले का कोई विचार मेरे दिमाग में किसी भी क्षण नहीं कोंधा. पिछले एक पखवाड़े से में मेलबर्न में तीसरी बार डेरा डाले हुए हूँ. लेकिन इस बार मेरा मानस बदला हुआ है. में समझ नहीं पा रहा की में गोरे और काले में कोई अंतर तलाशने में क्यों लगा हूँ.. मेलबर्न के उन उपनगरीय इलाकों में तनिक देर के लिए ठहर सा जाता हूँ जहाँ पर हुए हमलों की ख़बरें मैने अपने शहर में पड़ी थीं. . . मैं हेरत में हूँ की बहुचर्चित हमलो की धमक मेलबर्न के भारतवंशियों में नहीं. दिन रत मेहनत कर साफ सुथरा और सेहतमंद जीवन जीने वाले भारतीय इस गुजरे हुए कलुषित कल पर चर्चा भी नहीं करना चाहते.इनके मन में दहशत है और पलायन का विचार. करीब ३० लाख की आबादी वाले शहर मेलबर्न में लाख भारतीय है. इनमे हिंदी भाषी लोगों की संख्या अच्छी खासी है. फेडरेशन स्कायर पर स्थित रेडिओ स्टेशन की ईमारत से ६० से ज्यादा भाषाओँ में प्रसारण होता है. हिंदी श्रोताओं में इसके प्रति गजब का उत्साह है. डाक्टर दिनेश श्रीवास्तव यहाँ हिंदी प्रसारण के अधिकारी रहे हैं. चार दशक से यहाँ बसे दिनेशजी गुजरे साल की फसाद की घटनाओं को किसी मायने में रंगभेद प्रेरित नहीं मानते. दिनेशजी का कहना है की आस्ट्रेलिया भारत वाशियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. ऐसे अनेक लोग यहाँ आकर बसे है जिन्हें अपने देश की संस्कृति और कानून और पराये देश की संस्कृति कानून में भेद करने का मोका नहीं मिला . ऐसे लोग अपने देश में कानून की परवाह नहीं करते .अपना देश अपना है लेकिन पराये देश में हम कानून का पालन करके ही चेन से रह सकते है. अनेक घटनाओं की तह में मुख्य वजह यही थी. अनेक भारतीय विभिन्न अपराधों में यहाँ जेल में हें लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की भारतीय छात्रों पर हुए कुछ हमलों की वजह लूटपाट के साथ रंगभेद की प्रवर्ति रही. विक्टोरिया सरकार ने इसे स्वीकार किया और त्वरित कार्यवाही भी की.अनेक फर्जी विशय्विधालायो को बंद किया ,अनेक गेरजरूरी कोर्सों को बंद किया.स्थायी बाशिंदे बनने यानि पी. आर. की जुगाड़ कर यहाँ बसने वालो की पहचान की गयी.पी. आर .मिलने पर यहाँ ऐसी अनेक सुविधाएँ मिल जाती हैं जिनकी कल्पना हम अपने देश में नहीं कर सकते.सरकार ने पी आर के कानूनों को भी सक्त किया है.फिर भी रंगभेद पर आस्ट्रेलिया में विवाद जारी है. ऑस्ट्रलियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ क्रिमिनोलोजी द्वारा किये गए एक शोध में भारतीय छात्रों पर किये गए हमलों में रंगभेद का तत्व नहीं पाया गया .सरकार ऐसे शोध करने वालों को प्रेरित कर RAHI HAI .यह बात अलग HAI की शोध में निकले निष्कर्षों का अनेक छात्र विरोध भी कर रहे हैं. सामाजिक कार्यों में लगे एक भारतीय का कहना HAI की प्रबुद्ध वर्ग में रंगभेद पर नए सिरे से छिड़ी वहस भी सरकार पर भारतीय छात्रो की सुरक्षा के बारे में सोचने पर मजबूर कर रही है. इसके साथ साथ सरकार ने यहाँ रहने वाले भारतियों के विभिन्न संगठनों को सुरक्षा का भरोसा भी दिया है.यहाँ के भारतीय सरकार के इस भरोसे पर यकीं कर रहे हैं और यही कारण है की उन्हें हमलों की धमक सुनाई नहीं दे रही . अमन और चेन की वंसी बजा कर जीने वाले भारतियों का कहना है की आस्ट्रेलिया बहुसंस्कृति को बड़ाबा देने वाला देश है. २३० देशों के लोग यहाँ बसे हैं. हमारे देश के लोगों के लिए प्रतिभा प्रदर्शन और धनोपार्जन के अनेकानेक अवसर हैं. अंगद की तरह पैर जमाये भारतियों को अपने देश और अपनों की याद अवश्य सताती है.उसकी भरपाई वे राष्टीय पर्व व् धार्मिक उत्सवों को मिलजुलकर मना कर कर लेते हैं.पिछले दिनों विक्टोरिया सरकार ने यहाँ छोटे मोटे डिप्लोमा कोर्सों के लिए आने वाले भारतीय छात्रों में (पिछले माह में) २० फीसदी की गिरावट और विशव विधालय की डिग्री के लिए फीसदी की बढोतरी दर्ज की है.सच्चाई यह है की यह आंकड़े हमलों की धमक नहीं वरन विक्टोरिया सरकार के दूरगामी सोच का त्वरित व् सकारात्मक परिणाम है.
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Tuesday, August 9, 2011

Melbourne --8

मेलबर्न---, केप्टिन कुक काटेज - अतीतजीवी होने का सुख अतीत में झाँकने का अपना अलग सुख है. आने वाले कल को सुनहरा बनाने के लिए जरूरी है की हम गुजरे हुए कल को बार बार देखें .यह बात आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर के तमाम संग्रहालय देखने के बाद  जेहन में आती है. अतीत की धरोहर को सजा सवारकर प्रदर्शित करने की कला आस्ट्रेलिया सरकार जानती है.और संसाधन की कोई कमी इनके पास नहीं. आस्ट्रेलिया का इतिहास करीब २५० साल पुराना है. इस इतिहास को सरकार ने गजब की सुन्दरता के साथ यहाँ के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया है.आस्ट्रेलिया के इन एतिहासिक झरोंखों में ताक़ झांक करते   मुझ जेसे पर्यटक को अधिकाधिक पर्यटन की इच्छा बलबती होती है. यह आलेख में मेलबर्न के स्मरणीय स्मारक केप्टिन कुक काटेज को समर्पित करना चाहता हूँ. केप्टिन कुक के नाम से मशहूर हुया नोजवान जेम्स कुक है .जो इंग्लैंड के योर्कशायर के गाँव ग्रेट Ayton में रहता था और २७ साल की उम्र में रायल नेवी में रहते हुए १७६९ में रहस्य रोमांच से भरपूर लम्बी लम्बी समुद्री यात्राएँ की. आस्ट्रेलिया को खोज निकालने वाला केप्टिन कुक ही था. कुक ने अपने जीवन में ३२२००० .मी.की यात्रा कर और इस अभियान में आस्ट्रेलिया की खोज कर दुनिया के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया.. कुक का जहाज  अप्रेल १७७० में विक्टोरिया में समुद्र किनारे लगा तभी से इंग्लेंड के हाथ आस्ट्रेलिया आया . १८ वी. शताब्दी में इंग्लेंड की हालत पतली थी और गरीबी के कारण अपराध बढ रहे थे,अपराधियों को जेल में रखने के स्थान कम पड़ने लगे.इसी समय में कुक द्वारा खोजी नई जमीन इंग्लेंड को बेहद पसंद आई. .सभी जानते हैं की इंग्लेंड ने इस कोलोनी का इस्तेमाल केदिओं के लिए किया..भारत में काला पानी नाम से मशहूर  अंडमान -निकोबार दीप का प्रयोग भी जेल के रूप में किया गया था.
yorkshire  के गाँव great  Ayton  में कुक के पिता के मकान को जस का तस उखाड कर मेलबर्न में स्थापित करने की योजना १९३४ में बनी.मेलबर्न के एक इतिहास प्रेमी सर Russell  Grimwade ने  इस मकान की कीमत चुकाई और छोटे से मकान की इंटों को  सावधानीपूर्वक अलग कर ,उन पर नंबर डालकर २५३ कंटेनरों में बंद कर जहाज से मेलबर्न लाया गया. इंग्लेंड में  १८ वीं शताब्दी के मकानों की बनाबट आज से एकदम भिन्न थी. .
मकान के चारोँ ओर  फुलवारी और ऐसे पेड़-पोधे होते थे जो किसी रोग के उपचार में काम आते थे. हेरत की बात यह है की कुक की काटेज की ईट पत्थर  ही नहीं  काटेज की फुलवारी  भी  यहाँ इंग्लेंड से लाकर   रोप दी गई है. यह काटेज पर्यटकों को बेहद  लुभा रही है.१८ वीं शताब्दी इंग्लेंड की जीवन शेली के दर्शन करा रही है.इससे भी अधिक  महत्वपूर्ण बात यह की सरकार और यहाँ के वाशिंदे  मेलबर्न के Fitzroy  Gardens  में खड़ी  कुक की काटेज  के जरिये   इस शानदार देश के जनक  को श्रध्दासुमन अर्पित करने के साथ साथ अपने  अतीत प्रेम को भी दर्शा रही है.       
  

Wednesday, August 3, 2011

मेलबर्न-७,नेड केलि की कथा निराली है

मेलबर्न -- ,नेड केली की कथा निराली है. आप आस्ट्रलिया आयें और नेड केली की रोचक कहानी सुनें बिना चले जाएँ ,यह संभव नहीं .अंग्रेजी सत्ता को चुनोती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नोजवान नेड keli को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था .मेलबर्न की ओल्ड जेल(आज मूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर में हेरत में पड़ गया जहां नेड को आनन् फानन में फाँसी दी गयी .आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर में मंत्रमुघ हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है.मजेदार बात यह है की नेड की जिन्दगी में जिसने भी जानने की कोशीश की वह बहता ही चला गया.इतिहासकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक ,उपन्यासकार ,फिल्मनिर्माता ,कवि,लेखक ,पत्रकार,लोकगायक ही नहीं आस्ट्रेलिया की सामान्य जनता ने नेड के गीत गए हैं.आस्ट्रेलिया की पुलिस रहस्य रोमांच से भरपूर नेड की जिन्दगी के कुछ अनसुलझे पहलुओं को आज भी सुलझाने की कोशिश करती रहती है. जून १८५५ में जन्मे नेड के पिता रेड केली आयरलेंड से एक केदी के रूप में आस्ट्रेलिया लाये गए थे. सजा काटने के बाद केली परिवार यही बस गया. १२ भाई बहिनों में नेड सबसे बड़ा था .१२ वर्ष की उम्र में नेड ने देखा की विक्टोरिया पुलिस ने उसके परिवार को कभी भी चेन से सांस नहीं लेने दी. अबोध बच्चों के साथ उसकी माँ को तो कभी उसको जेल में डाल देना पुलिस की आदत बन गयी .१४ वर्ष की उम्र में नेड बाग़ी हो गया. हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर वह अंग्रेजी हुकूमत को मजा चखाने बगाबत की राह पर चलने लगा.हथियार थाम और घोड़ो पर सवार नोजवानों का केली गेंग जब जंगलों से अत्याचारी सत्ता के खिलाफ हुंकार भरता था तो पुलिसवालों की रूह कांप जाती थी. केली गेंग को पैसों की जब भी आवशयकता होती वे बेंक लूटते किसी राहगीर को नहीं...सन १९७८ में केली के नाम से सरकार थर थर कांपने लगी.१०० पौंड का इनाम रखा केली के सर पर.एक बार पुलिस वालों ने केली को घेर लिया.इनमें पुलिस वाले गेंग की गोलिओं से मारे गए. एक भाग निकला.इस घटना के बाद केली की गिरफ्तारी पर इनाम २०० पौंड कर दिया गया. बाद में यह इनाम ८००० पौंड तक पहुच गया .इंग्लेंड और आस्ट्रेलिया में किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतना बड़ा इनाम आज तक घोषित नहीं किया गया . केली गेंग के चारों सदस्य लोहे का कवच पहनते थे .इस पर गोली असर नहीं करती थी. इस कबच में खेत जोतने वाले हल का लोहा प्रयोग किया गया था .सर से लेकर पेरों तक का ४० किलो वजन का कवच किस तकनीक से बनाया गया,केली के दिमाग में कवच की परिकल्पना केसे आई और इसे केसे अंजाम दिया आदि सवाल १२५ साल बाद भी केली पर शोध करने वालों को परेशान किये हुए हैं. गाँव वाले केलि से भरपूर सहानभूति रखते थे.केलि ने ५७ पेज (करीब ८००० शब्द) का एक पत्र लिखा और इसे अखबार में प्रकाशित करने के लिए एक व्यक्ति को दिया.इसकी एक प्रति विक्टोरिया संसद को भेजी.इस पत्र को तब दवा दिया गया.१९३० में यानी केलि को म्रत्यु दंड दिए जाने के ५० साल बाद यह पत्र अखबार में छपने के बाद उजागर हुआ. इस पत्र में केलि ने अपने बागी बनने की पूरी कथा तथा अपने परिवार पर किये गए पुलिसिया जुल्म लिखने के साथ साथ शोषित और गरीबों पर ब्रटिश हुकूमत द्वारा किये जाने वाले अन्याय की तस्वीर है.केलि के इस पत्र और भारत के शहीद भगत सिंह द्वारा अदालत में दिए गए बयानों में मुझे समानता मिलती है. यह एक संयोग है.केलि ने पुलिस के हाथों कभी पकडे जाने की व्यवस्था अपने कबच के माध्यम से कर रखी थी.लेकिन विधि को यह मंजूर था.बात २६ जून १८८० की है.मेलबर्न से १८० की.मी. दूर ग्लेंरोवन नाम का गाँव है. केलि ने इस गाँव के ७० लोगों को अचानक बंधक बनाया.उसकी योजना थी की इस खबर को सुन मेलबर्न से पुलिस फोर्स ट्रेन से आयेगी. वह रास्ते में पटरी उखाड कर ट्रेन को पलटने की व्यवस्था कर देगा.बंधकों में एक स्कूल मास्टर भी था. किसी तरह वह भाग निकला और ट्रेन को पलटने से बचा लिया. पुलिस ने उस होटल को घेर लिया जिसमे केलि बंधको के साथ था. दोनों ओर से गोलीवारी हुई. केलि अपने कवच पर गोलिओं के वार झेलता रहा.लेकिन एक गोली उसके पैर में लगी और वह गिर पडा और पकड़ा गया/.बाकी तीन साथी मारे गए. मुकदमा चला और आनन् फानन में ११ नव.१८८० को केलि को ओल्ड जेल में फँसी पर लटका दिया गया. केलि को फांसी देने की अपील ३०००० गाँव वालों ने की. फांसी की सजा सुनाने वाले जज रेडमंड बेरी ने जब केलि से अंतिम इच्छा पूंछी तो केलि ने बड़ी सहजता से कहा की वह जहां जा रहा है वहां आपसे (जज) जल्द ही मुलाक़ात होगी.यह संयोग था की जज बेरी १२ दिन बाद अपने चेंबर में चल बसे. केलि की कहानी का एक आश्चर्यजनक पह्लू यह है की जज बेरी ने ओल्ड जेल के पास एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी. आज यह लाइब्रेरी दुनिया की मानी हुई लाइब्रेरी है. इस स्टेट लाइब्रेरी में आज केलि की स्मृति रक्षा बहुत सम्मान के साथ की जा रही है .एक गेलरी केलि को समर्पित है. इसमें केलि का रक्षा कवच और केलि को अमरत्व प्रदान करने वाला उसका पत्र अनेक चित्रों के साथ बड़े सम्मान के साथ प्रदर्शित है .केलि की बहादुरी ब्रिटिश सत्ता को जबरदस्त चुनोती थी .केलि किस मिटटी का बना था, इस रहस्य को जानने के लिए पुलिसवालों ने फांसी के फंदे से केलि के मृत शारीर को उतारा और उसका सर कलम कर चिकित्सकों से जांच कराइ की इसके अन्दर कोई चीज विशिष्ट तो नहीं. बाद में पुलिस अफसर केलि की खोपड़ी का इस्तेमालअपनी मेज पर एक पेपरवेट के रूप में भी करते रहे.अपनी निजी लड़ाई जब jantaa की लड़ाई बन जाय तो लड़ने वाला योध्दा जननायक बन जाता है . यही हुआ केलि केसाथ. जिस स्थान पर केलि को फासी दी गयी उस स्थान पर उसके जीवन पर नाटक खेले जा रहे है ,जिस कालकोठरी में रहा वह संग्रहालय है,जिस मिटटी में उसने पुलिस के साथ लुकाछिपी की वहां लोकगायक उसकी बहादुरी के गीत गा रहे हैं. सम्पूर्ण आस्ट्रेलिया के विश्व विधालयों में केलि के संघर्ष के पीछे छिपे जनहित के मर्म को तलाशने की कोशिश की जा रही है गोष्ठियों और सेमीनार के जरिये केलि के जाने के सवा सो साल बाद भी. .मेलबर्न -- ,नेड केली की कथा निराली है. आप आस्ट्रलिया आयें और नेड केली की रोचक कहानी सुनें बिना चले जाएँ ,यह संभव नहीं .अंग्रेजी सत्ता को चुनोती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नोजवान नेड keli को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था .मेलबर्न की ओल्ड जेल(आज मूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर में हेरत में पड़ गया जहां नेड को आनन् फानन में फाँसी दी गयी .आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर में मंत्रमुघ हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है.मजेदार बात यह है की नेड की जिन्दगी में जिसने भी जानने की कोशीश की वह बहता ही चला गया.इतिहासकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक ,उपन्यासकार ,फिल्मनिर्माता ,कवि,लेखक ,पत्रकार,लोकगायक ही नहीं आस्ट्रेलिया की सामान्य जनता ने नेड के गीत गए हैं.आस्ट्रेलिया की पुलिस रहस्य रोमांच से भरपूर नेड की जिन्दगी के कुछ अनसुलझे पहलुओं को आज भी सुलझाने की कोशिश करती रहती है. जून १८५५ में जन्मे नेड के पिता रेड केली आयरलेंड से एक केदी के रूप में आस्ट्रेलिया लाये गए थे. सजा काटने के बाद केली परिवार यही बस गया. १२ भाई बहिनों में नेड सबसे बड़ा था .१२ वर्ष की उम्र में नेड ने देखा की विक्टोरिया पुलिस ने उसके परिवार को कभी भी चेन से सांस नहीं लेने दी. अबोध बच्चों के साथ उसकी माँ को तो कभी उसको जेल में डाल देना पुलिस की आदत बन गयी .१४ वर्ष की उम्र में नेड बाग़ी हो गया. हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर वह अंग्रेजी हुकूमत को मजा चखाने बगाबत की राह पर चलने लगा.हथियार थाम और घोड़ो पर सवार नोजवानों का केली गेंग जब जंगलों से अत्याचारी सत्ता के खिलाफ हुंकार भरता था तो पुलिसवालों की रूह कांप जाती थी. केली गेंग को पैसों की जब भी आवशयकता होती वे बेंक लूटते किसी राहगीर को नहीं...सन १९७८ में केली के नाम से सरकार थर थर कांपने लगी.१०० पौंड का इनाम रखा केली के सर पर.एक बार पुलिस वालों ने केली को घेर लिया.इनमें पुलिस वाले गेंग की गोलिओं से मारे गए. एक भाग निकला.इस घटना के बाद केली की गिरफ्तारी पर इनाम २०० पौंड कर दिया गया. बाद में यह इनाम ८००० पौंड तक पहुच गया .इंग्लेंड और आस्ट्रेलिया में किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतना बड़ा इनाम आज तक घोषित नहीं किया गया . केली गेंग के चारों सदस्य लोहे का कवच पहनते थे .इस पर गोली असर नहीं करती थी. इस कबच में खेत जोतने वाले हल का लोहा प्रयोग किया गया था .सर से लेकर पेरों तक का ४० किलो वजन का कवच किस तकनीक से बनाया गया,केली के दिमाग में कवच की परिकल्पना केसे आई और इसे केसे अंजाम दिया आदि सवाल १२५ साल बाद भी केली पर शोध करने वालों को परेशान किये हुए हैं. गाँव वाले केलि से भरपूर सहानभूति रखते थे.केलि ने ५७ पेज (करीब ८००० शब्द) का एक पत्र लिखा और इसे अखबार में प्रकाशित करने के लिए एक व्यक्ति को दिया.इसकी एक प्रति विक्टोरिया संसद को भेजी.इस पत्र को तब दवा दिया गया.१९३० में यानी केलि को म्रत्यु दंड दिए जाने के ५० साल बाद यह पत्र अखबार में छपने के बाद उजागर हुआ. इस पत्र में केलि ने अपने बागी बनने की पूरी कथा तथा अपने परिवार पर किये गए पुलिसिया जुल्म लिखने के साथ साथ शोषित और गरीबों पर ब्रटिश हुकूमत द्वारा किये जाने वाले अन्याय की तस्वीर है.केलि के इस पत्र और भारत के शहीद भगत सिंह द्वारा अदालत में दिए गए बयानों में मुझे समानता मिलती है. यह एक संयोग है.केलि ने पुलिस के हाथों कभी पकडे जाने की व्यवस्था अपने कबच के माध्यम से कर रखी थी.लेकिन विधि को यह मंजूर था.बात २६ जून १८८० की है.मेलबर्न से १८० की.मी. दूर ग्लेंरोवन नाम का गाँव है. केलि ने इस गाँव के ७० लोगों को अचानक बंधक बनाया.उसकी योजना थी की इस खबर को सुन मेलबर्न से पुलिस फोर्स ट्रेन से आयेगी. वह रास्ते में पटरी उखाड कर ट्रेन को पलटने की व्यवस्था कर देगा.बंधकों में एक स्कूल मास्टर भी था. किसी तरह वह भाग निकला और ट्रेन को पलटने से बचा लिया. पुलिस ने उस होटल को घेर लिया जिसमे केलि बंधको के साथ था. दोनों ओर से गोलीवारी हुई. केलि अपने कवच पर गोलिओं के वार झेलता रहा.लेकिन एक गोली उसके पैर में लगी और वह गिर पडा और पकड़ा गया/.बाकी तीन साथी मारे गए. मुकदमा चला और आनन् फानन में ११ नव.१८८० को केलि को ओल्ड जेल में फँसी पर लटका दिया गया. केलि को फांसी देने की अपील ३०००० गाँव वालों ने की. फांसी की सजा सुनाने वाले जज रेडमंड बेरी ने जब केलि से अंतिम इच्छा पूंछी तो केलि ने बड़ी सहजता से कहा की वह जहां जा रहा है वहां आपसे (जज) जल्द ही मुलाक़ात होगी.यह संयोग था की जज बेरी १२ दिन बाद अपने चेंबर में चल बसे. केलि की कहानी का एक आश्चर्यजनक पह्लू यह है की जज बेरी ने ओल्ड जेल के पास एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी. आज यह लाइब्रेरी दुनिया की मानी हुई लाइब्रेरी है. इस स्टेट लाइब्रेरी में आज केलि की स्मृति रक्षा बहुत सम्मान के साथ की जा रही है .एक गेलरी केलि को समर्पित है. इसमें केलि का रक्षा कवच और केलि को अमरत्व प्रदान करने वाला उसका पत्र अनेक चित्रों के साथ बड़े सम्मान के साथ प्रदर्शित है .केलि की बहादुरी ब्रिटिश सत्ता को जबरदस्त चुनोती थी .केलि किस मिटटी का बना था, इस रहस्य को जानने के लिए पुलिसवालों ने फांसी के फंदे से केलि के मृत शारीर को उतारा और उसका सर कलम कर चिकित्सकों से जांच कराइ की इसके अन्दर कोई चीज विशिष्ट तो नहीं. बाद में पुलिस अफसर केलि की खोपड़ी का इस्तेमालअपनी मेज पर एक पेपरवेट के रूप में भी करते रहे.अपनी निजी लड़ाई जब jantaa की लड़ाई बन जाय तो लड़ने वाला योध्दा जननायक बन जाता है . यही हुआ केलि केसाथ. जिस स्थान पर केलि को फासी दी गयी उस स्थान पर उसके जीवन पर नाटक खेले जा रहे है ,जिस कालकोठरी में रहा वह संग्रहालय है,जिस मिटटी में उसने पुलिस के साथ लुकाछिपी की वहां लोकगायक उसकी बहादुरी के गीत गा रहे हैं. सम्पूर्ण आस्ट्रेलिया के विश्व विधालयों में केलि के संघर्ष के पीछे छिपे जनहित के मर्म को तलाशने की कोशिश की जा रही है गोष्ठियों और सेमीनार के जरिये केलि के जाने के सवा सो साल बाद भी. .v
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