Saturday, September 26, 2009

नानाराव धुन्‍धु पन्‍त ने मथुरा में भी बनबाई थी हवेली

                  
        अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर अपने शौर्य  और  पराक्रम का  सिक्का जमाने वाले 1857  के गदर के कई किस्से आज तक उजागर नहीं हुए हैं। यह कम ही लोगों को पता है कि गदर के हीरो रहे नाना राव धुन्धु  पन्त ने मथुरा में भी एक हवेली बनाई  थी। इतिहास की  पुस्तकों में इस बात का जिक्र नहीं है कि नाना  ने मथुरा में अपनी हवेली  क्यों बनाई ? वे कब यहाँ आए और कब गए ? लेकिन सरकारी अभिलेखों में मथुरा में  नाना की हवेली होने का प्रमाण है।

मथुरा के इतिहासकार डा. भगवान सहाय  पचौरी ने  बताया कि उन्होंने मथुरा में नाना की हवेली के चिन्ह तलाषने की कोषिष की लेकिन सफलता नहीं मिली । नाना ने 1857 की महान क्रांति में बुन्देलखंड, अवध, बनारस और रूहेलखंड कमिनरियों में और दिल्ली मेरठ आदि स्थानों पर देभक्तों को एक जुट करने के लिए भाग दोड की थी। नाना के सिर पर ब्रिटि शासकों ने एक लाख का इनाम रखा था। यह महान देशभक्त मथुरा में महल बनवाकर अपने भतीजे बालाराव के साथ क्यों रहा। इस पर इतिहास मौन है लेकिन मथुरा कलक्टरी के बस्तों में रखे रिकार्ड में नाना के मथुरा महल का जिक्र है।

अंग्रेज कलक्टर एफ.एस ग्राउन ने गदर के बाद 'मथुरा: ए डिस्ट्रिक्ट मेमौअर' के नाम से एक पुस्तक लिखी थी इस पुस्तक के मुताबिक 14 मार्च, 1857 को गुड़गांव के मजिस्ट्रेट ने मथुरा के तत्कालीन कलक्टर मार्क थार्न हिल को खबर भेजी कि हिंन्दुस्तानी विद्रोही मथुरा की ओर बढ़ रहे हैं। र्थान हिल ने सरकारी खजाने को आगरा भिजवाने का प्रबंध किया और खुद सेठ कन्हैयालाल की हवेली में जा छुपा। बाद में भेष बदलकर आगरा भाग गया। हिंदुस्तानी क्रांतिकारी कोसी और छाता होते हुए मथुरा पहुंचे। 30 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने एक अंग्रेज फौजी बर्टन को गोली मार दी और सात दिन तक मथुरा को अंग्रेजों से आजाद रखा। इसके बाद अंग्रेज फौज ने मथुरा में हमला बोला और क्रांतिकारियों को चुन-चुन कर मारा।

डाक्टर पचौरी ने बताया कि इसके बाद मथुरा से भागा कलक्टर थार्न हिल सात दिन बाद वापस आ गया। उसने 30 अक्टूबर 1857 को हर के कोतवाल को एक आदे जारी किया। उसने कोतवाल को लिखा, 'आपको नाना राव की रिहायष पूरी की पूरी गिरानी है। उसके बाग के सभी पेड़ कटवाने हैं। यह घोषणा करनी है कि जिस किसी भी हरी को कूडा - कर्कट और गंदगी फेंकनी हो, वह इस स्थान का प्रयोग करे। हर कोतवाल ने कलक्टर के हुक्म की तामील की। उसने अपने जवाब में लिखा, 'यथा आदे नाना साहब की रिहाइश गिराई जा रही है। बाग के पेड़ काटे जा रहे हैं। जनता को यहाँ कूड़ा और गंदगी डालने की घोषणा कर दी गई है। काम की पूर्ति के वाद निर्गत आदे का उत्तर लिख भेजा जाएगा।'
मथुरा संग्रहालय के एक अधिकारी ने बताया कि गदर के पुराने रिकार्ड मेरठ संग्रहालय भेज दिये गए हैं। डाक्टर पचौरी का कहना है इन अभिलेखों को मथुरा संग्रहालय में रखा जाना चाहिए। साथ ही नाना के महल का स्थान खोजा जाना चाहिए ताकि वहां नाना का स्मारक बनवाया जा सके।

Monday, September 21, 2009

ब्राह्मी लिपी के माहिर हैं पांचवीं पास मूलचंद

इंसान के इरादे बुलंद हों तो कुछ भी असंभव नहीं है। इस कहावत को सच सावित कर दिया है 53 साल के मूलचंद ने। मूलचंद मथुरा संग्रहालय में प्रदर्शित प्राचीन कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि की इबादत ऐसे पढते हैं जैसे हिंदी में लिखी गई चिट्ठी । हैरत की बात है कि मूलचंद सिर्फ पांचवीं पास है। वे मथुरा संग्रहालय में पिछले35 साल से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर तैनात है। ब्राह्मी का जन्म मौर्य काल (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व ) का माना जाता है। छठी ताब्दी के गुप्त काल तक बनी मूर्तियों, सिक्कों व शि‍लालेखों पर ब्राह्मी लिपि का ही इस्तेमाल किया गया है। सम्राट अशोक के सभी 14 शि‍ला लेखों पर खुदी इबारत ब्राह्मी लिपि में है। पाली और ब्राह्मी को पढने की कहानी काफी दिलचस्प है। मूलचंद ने बाताया कि शुरूआती दौर में उनकी डयूटी संग्रहालय की वीथिका में लगाई गई थी। तब बर्लिन विश्‍ववि‍द्यालय की एक वयोवद्व प्रोफेसर संग्रहालय की मूर्तियों का बारीक अध्ययन करने आती थी। साल में पंद्रह दिन व मथुरा संग्रहालय में रूकती थी। मूलचंद ने बताया कि वे मूर्तियों पर लिखी इबात पर चढी धूल हटाते थे। प्रोफेसर टार्च की रोनी में ब्राह्मी लिपि की इबारतें पढ़ती थी। इसे सुनते हुए मूलचंद की दिलचस्पी बढ़ी। एक कापी बनाकर उन्होंने ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला के आगे हिंदी वर्णमाला लिख ली। धीरे-धीरे उन्होंने मूर्तियों पर लिखी इबादत को तेजी से पढना सीख लिया। मूलचंद के मुताबि‍क अब वे ब्राह्मी लिपि में कुछ भी लिख सकते हैं।

प्राचीन मूर्तियों , मथुरा कला, भारतीय संसकृति और इतिहास की जानकरी रखने वाले त्रुघ्न र्मा के मुताबिक मूलचंद की प्रतिभा क कोई सानी नहीं है।लेकिन उसकी प्रतिभा की उपेक्षा हुई है। एक दक पहले एक निदेक ने मूलचंद को कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि का अध्ययन करते देखकर गुस्सा आ गया था। उन्होंने मूलचंद को मूर्तियों की देखरेख के काम से हटा कर साइकिल स्टैंड पर भेज दिया। दरअसल निदेक को ब्राह्मी लिपि का कोई ज्ञान नहीं था।

मूलचंद ने बताया कि इस 2300 साल पुरानी लिपि को सबसे पहले 1839 में जेम्स प्रिंसेप नाम के अंग्रेज ने पढा था। 2006 में ब्राह्मी लिपि के उद्भव और विकास पर भाषण देने मथुरा संग्राहलय आए राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेक डा. आर.सी र्मा मूलचंद जैसे अशि‍क्षित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की प्रतिभा देखकर चौंक गए। उन्होंने मूलचंद के प्रमोन की भरसक कोशि‍श की लेकिन कामयाबी नहीं मिली।आर्थिक अभाव के कारण मूलचंद अपने पुत्रों को अच्छी शि‍क्षा दिलवाने में असमर्थ है।