Monday, December 19, 2011

रानी झाँसी का किला

झाँसी के किले के रखरखाव में पुरातत्व विभाग द्वारा बरती जा रही उपेक्षा से सैलानिओं को आधी अधूरी जानकारी मिल रही है ,साथ ही विभाग को आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है. किला कितना ही छोटा क्यों न हो रानी झासी के शौर्य और पराक्रम का मूक गवाह है. अनेक लोग रानी को स्वतंत्रता सैनानिओं की फेहरिस्त  में रखने से मना करते है क्यों कि रानी अपनी झासी के लिए लड़ी थी न कि फिरंगिओं को देश से भगाने के लिए. ऐसे  लोग भूल जाते हैं कि फिरागिओं के अत्याचार,  तिकड़मों के द्वारा राजाओं की सत्ता को हडपना  आदि अनाचारों का प्राण हथली पर रख कर विरोध करना भी देशभक्ति  है.. २३ साल की उम् में रानी शहीद हुई.
दामोदर राव को गोद  लेने  की घटना के बाद झाँसी में वबाल मचा .अंग्रेजों ने राज्य हडपने की योजना बनाई और आक्रमण किया.
पूना का एक गरीव ब्रह्मण उन दिनों झाँसी में था. १८ दिनों झाँसी को किला फिरंगिओं से घिरा रहा .विष्णु भट्ट गोडसे नामक एस ब्रह्मण ने रानी के शौर्य और पराक्रम को देखाथा. बाद में उसने एक पुस्तक लिखी. और इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद मांझा प्रवास नाम से श्री अमृत लाल नगर ने किया है. इस पुस्तक को जो कोई पढ़ेगा रानी को  सही सही और गहरे से समझ पायेगा.
पुरातत्व विभाग ने किले को और आकर्षक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किये हैं. किले के अन्दर कालकोठरी बंद पड़ी है. इस कोठरी में अग्रेजों ने न जाने कितने स्वतंत्रता  सैनानिओं को फँसी पर लटका दिया था. इन गुमनाम शहीदों के नाम पर एक पट्टिका जरुरी है.
यदि आप देश के अतीत से लगाव रखते  है तो एक दिन परिवार के साथ झाँसी रानी का किला देखने और जिन्दगी को समझने जरूर जांए .
 

 

Monday, December 12, 2011

एक संस्मरण

 
यादों के सहारे
अशोक बंसल

वृध्द  होने पर इन्सान में भौतिक और पारलौकिक   में भेद करने की ललक पैदा  होती है. आस्था जैसे   टी.वी.चैनेल भले लगने लगते हैं. वक्त काटने के लिए पूजा -पाठ में ज्यादा से ज्यादा रम जाना उसे अच्छा लगता है.सांसारिक  लोगों  की एकाकी लोगों के लिए यही  सर्वोत्तम सलाह भी है. पर ८५  बसंत देख चुकी और छब्बीस  बरस पूर्व मित्र जैसे  पति का साथ हमेशा- हमेशा के लिए छोड़ चुकी कनक चाची  का जीवन दर्शन कुछ और ही है. कनक चाची  ने अपने पति  आत्मप्रचार से दूर रहे  लेखक और अनुवादक स्व० प्रकाश चन्द्र चतुर्वेदी के साथ पत्रकार शिरोमणि दादा बनारसीदास चतुर्वेदी की सेवा में वर्षों गुजारे. पति की म्रत्यु  बाद कनक चाची फिरोजाबाद छोड़कर मथुरा  गयीं
प्रकश चाचा के जाने के बाद पिछले २६ सालों से चाची यादों के सहारे जी रही हैंइ  यादोमें फिरोजाबाद और टीकमगढ़  में लम्बे समय तक प्रवास करने वाले मामा बनारसीदास चतुर्वेदी  और   इतिहास में दर्ज तमाम महापुरुषों के रोचक किस्से और   प्रकाश  चाचा  की साहित्यिक गतिविधियाँ और ठहाके वाली ठिठोलियाँ शामिल हैं. दादाजी के फिरोजाबाद के घर में क्रान्तिकारियो का आवागमन बराबर बना रहता था .चाचीजी बताती हैं कि काला पानी की सजा काटने वाले बाबा प्रथ्वी सिंह आजाद   ,शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की बहिन ,शहीद चंद्रशेखर आजाद की माताजी ,शिव वर्मा आदि प्रसिद्ध लोग दादाजी के पास आते ही न थे वल्कि कई कई दिन घर में रहते थे. कनक चाची इतिहास के इन  पन्नों  के बीच चलती फिरती हैं ..इन यादों को चाचीजी कलेजे में समेटे हुए है. बुढ़ापे में इंसान के सठिया जाने का खतरा रहता है.चाचीजी इस रोग  से मुक्त  हैं.सामने वाला यदि साहित्य या क्रातिकारी आन्दोलन में रूचि रखता है तभी वह अपनी यादों के   पन्नों को पलटती हैं.  चाचीजी को याद है कि बाबा प्रथ्वी सिंह ने २५ साल छोटी लड़की से शादी की थी.चाचीजी  बाबा प्रथ्वी सिंह की पत्नी से खूब  घुल मिल गईं , दोस्ती हो गई.चाचाजी खान हैं किस्सों की.ये किस्से महान लोगों के हैं ,चाचीजी के निजी जीवन के कतई नहीं. अपनी   कृशकाय काया के कष्टों का जिक्र तो चाचीजी पूछने पर भी नहीं करती.
दादाजी "विशाल भारत "  (कलकत्ता ) के संपादक  रहने के बाद टीकमगढ़ आ गए  थे. प्रकाश चाचा   ने दादाजी के कहने पर अमेरिका के   लेखक हेनरी डेविड थोरो की पुस्तक 'वाल्डेन' का  हिंदी अनुवाद किया . महात्मा गाँधी ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है कि थोरो ने उनके जीवन को प्रभावित किया. चाचीजी  कहती है कि  इस पुस्तक क अनुवाद करने के लिए  प्रकाश  सुबह ४ बजे जाग जाया करते थे. हिंदी के उपयुक्त शब्दों कि तलाश में शब्दकोष  से माथ्थापच्ची करते  करते दादाजी के साथ ठहलने निकल जाते थे.  स्व० राष्ट्रपति  राजेंद्र प्रसाद ने दादाजी को राज्यसभा में सदस्य मनोनीत करने से पहले क्या वार्तालाप किया , सी .एफ. एंड्रूज  और गांधीजी के साथ दादाजी के  अनेक किस्से आदि  चाचीजी को याद हैं.  एक दिन मैं चाचीजी की मेज पर रख्खी थोरो की 'वाल्डेन' पढने के लिए मांग लाया .पुस्तक वापस करने में मुझे देरी हो गयी. चाचीजी ने मोबाईल पर तकादा करना शुरू कर दिया. मैं जब पुस्तक लौटने गया तो चाचीजी  ने भावुक स्वर में कहा कि ''अशोक ,बुरा मत मानना .अलमारी में रख्खी ये पुस्तके और हाथ के लिखे कागजों के पुलंदे तुम्हारे चाचा की धरोहर है.मैं इनके बीच चलती फिरती हूँ ,जीती हूँ तो मुझे अपार सुख मिलता है. इन यादों के सहारे मैंने २६ बरस ख़ुशी ख़ुशी गुजार दिए.
_______________________________________-अशोक बंसल,१७ बलदेव पूरी एक्स.मथुरा  मो.9837319969,


Friday, December 9, 2011

           
 व्यंग

बंद लिफाफे की माया
अशोक बंसल
  लिफाफे में रखी चीज को जानने की जिज्ञासा सदैव  से रही है.एक वक्त एसा था जब शातिर दिमाग बंद लिफाफे में  रखे मजमून  को भांप लेने में माहिर थे.अब  लिफाफे  और मजमून का कोई सम्बन्ध  नहीं रहा है.लिफाफे   में माया रखने का युग  गया हैलिफाफा गिफ्ट का पर्याय बन गया हैजन्मदिन,सालगिरह या शादी कोई भी आयोजनक्यों   हो  ,निमंत्रण मिलते ही भद्र पुरुष मुद्रायुक्त लिफाफा 
ले दावत उड़ाने निकल पड़ते हैं
  मेरे शहर  के एक मंत्री की बेटी की शादी में चाट -पकोड़ी  के दर्जनों स्टाल के मध्य एक स्टाल लिफाफों का थाइस स्टाल पर मंत्री के दो खास लोग मेहमानों द्वारा दिए लिफाफों का  हिसाब किताब देख रहे थे. एक व्यक्ति लिफाफा थाम  रहा था तो दूसरा एक रजिस्टर में लिफाफा में रखी रकम गिन गिन कर नोट कर रहा था. लिफाफों वाले स्टाल पर लगी भीड़ मंत्रीजी की लोकप्रियता मानी जा रही थी.
 शादी में दरवाजे पर मेहवानों के स्वागत में खड़े  मेजबान की कोट -पेंट की सभी जेबों में ठुंसे लिफाफों को देख खुद के किसी होटल में आने का आभास होता है.फर्क सिर्फ इतना है की इस  होटल 
में खाने का सामान मेजवान की मर्जी का और पेमेंट मेहमान  की इच्छा पर निर्भर करता है.
 मुझे अपने एक मित्र की रोनी सूरत की आज भी याद है  .मित्र अपनी बेटी की शादी में मेहमानों के दिए लिफाफे लेले कर जेब में  ठूंस  रहा था
अगले दिन हिसाब लगाने पर मालूम हुआ कि कई लिफाफे गायब थे. ऐसा ही एक किस्सा मुझे याद हैमित्र ने लिफाफे रखने की जिम्मेदारी अपनी सजी धजी पत्नी को दे रखी थी. पत्नी को अपनी साड़ी के गेट अप की चिंता थी सो लिफाफे का थैला मालकिन ने नोकरानी को दे दिया .
मेहमानों की भीड़ में नोकरानी  कहाँ खो गई  कि आज तक नहीं मिली हैलिफाफे की माया ने सुखराम  पर जो गुजारी है ऐसा कहर भागवान किसी पर  ढाए.किस्सा रोचक होने  के साथ भीभ्त्स भी है. सुखराम को मित्र की बेटी की शादी में शहर के शानदार होटल में जाना था .सूट पहनने से पूर्व सुखराम ने  लिफाफा तैयार किया .गेट पर खड़े मित्र को बधाई  और लिफाफा   दोनों  थमा दिए और फिर मेज पर सजे भोजन पर टूट पड़नेतैयार हो गए .मेहमानों ने आधाअधूरा खाया था कि रिवाल्वर धारी एक दरोगा की आवाज हवा में गूंजी.''कोई हिलेगा नहीं,होटल का गेट बंद  कर दिया गया हैगिफ्ट के लिफाफे का थैला गायब हैआप सब की तलाशी होगी. ''   
मेहमानों के होश फाकता  हो गए .डीजे पर  थरकते पैरों में बेड़ियाँ पड़ गयी,महिलाओं की अंगुलियाँ सब्जी में डूबी की डूबी  रह गयीं.  गेट पर दरोगा मेहमानों की तलाशी लेने में मश्गूल थादेर से आने वाले मेहमान  होटल में प्रवेश  पाने से पहले  किसी बड़े संकट की गंध पा फूट लिए.  
सुखराम सोच रहे हैं कि लिफाफे में बंद मजमून ने कभी  किसी को इतने  बड़े संकट में नहीं डाला जितना लिफाफे में बंद माया ने
 -----------------------------------------अशोक बंसल,१७ बल्देव्पुरी एक्सटेंशन ,मथुरा  9837319969