अशोेक बंसल
जन्तर मन्तर पर धरने पर बैठे अन्ना को देखने-सुनने प्रो0 मनसुखलाल भी गए थे। उनके कलेजे में बरसों से दबी-बैठी नैतिकताओ में उबाल आ गया। कई प्रण एक साथ किए। एक भी क्लास नहीं छोेड़ेंगे। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ईमानदारी से करेंगे। सामाजिक जीवन में पुराने सिद्धान्त ‘न घूस लो न घूस दा’े पर चलेंगे। इसी उधेड़बुन में मनसुळलाल दिल्ली स्टेशन पहुंचे तो आगरा जाने वाली टेªन ने सीटी मार दी। मनसुख भागे। सामने थ्री टियर का डिब्बा था। चढ़ गए।
साधारण टिकिट और डिब्बा रिजर्व/टीसी को आना ही था। काले कोट को देखकर मनसुख की सांसे ऊपर नीचे होनेे लगी। रसीद काटने पर आमादा टीसी से प्रो0 मनसुख ने रिजर्व डिब्बे में चढ़ने की मजबूरियां गिनाई।अध्यापकों पर रहम करने की विनम्र अपील की। घाट घाट का पानी पीने वाला टीसी टस से मस न हुआ। तब मनसुख झुके। फौरन सौ का पत्ता निकाला और टीसी को चलता किया। मनसुख के कलेजे की नैतिकता ने हिचकी ली। बोले ‘अन्ना मुझे माफ करना।’
अगले दिन मनसुख कॉलेज में शिक्षक संघ की बैठक में पहुंचे। डी.ए. के एरियर के बिल को डी.आई.ओ.एस. का बाबू पास करने की एबज में दक्षिणा मांग रहा था। शिक्षकों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की मांग उठ रही थी। मनसुख ने जन्तर मन्तर पर बैठे अन्ना को अपनी ताकत बताया। तभी एक शिक्षक ने दुनियादारी का पाठ पढाया ‘‘बाबू बगल के कमरे में है। मात्र 50 रू0 प्रति शिक्षक चन्दा करो। दस हजार रु प्रति शिक्षक का लाभ है। जितनी देर उतनी ब्याज की हानि।’’ इस व्यावहारिक राय पर कई शिक्षकों के मुंह में मानो डाट लग गई। कुछ बड़बड़ाए। आनन फानन में बाबू की रिश्वत का चन्दा हुआ। मनसुख को यादा आया ‘जैसा देश वैसा भेष’’। तत्काल 50 रू0 जेब से निकाले और बुदबुदाए, ‘‘अन्ना मुझे माफ करना।’’
कॉलेज से घर जाते मनसुख को लगा किवह रक्तदान शिविर में टेबिल पर लेटे है और उनकी बांह में ठुंसी सुई में उनके शरीर से खून नहीं उनकी आत्मा के कण निकल रहे हैं। घर पर स्कूटर रोका तो मीटर रीडर मीटर में तांकझांक कर रहा था। बोला ‘सर आपके मीटर से छेड़छाड़ हुई है। सील टूटी है। शिकायत कर रहा हूं, यहां हस्ताक्षर करिए।’ मनसुख ने चाल चली ‘तुम्हे मालूम है अन्ना अनशन पर क्यों बैठे हैं? मीटर रीडर बोला‘ सर! इसीलिए तो अब हर काम कायदे से होगा।’ मनसुख को गान्धी की याद आई। फौरन 5 सौ का नोट निकाला और मीटर रीडर की मुठ्ठी गरम कर दी। मीटर रीडर के मुंह से शिष्टाचारवश निकला ‘नमस्कार’ लेकिन मनसुख के मुख से ‘‘अन्ना मुझे माफ करना’ही निकला ।
मनसुख को एम.एस.सी. गणित की कापियां जांचनी थी। 15 रू0 प्रति कॉपी मिलेगा। सोचा कुछ कापियां निपटा लूं। मनसुख ने लाल कलम थामी और जांचने बैठ गए। पहली काफी के आठ दस पन्न पलटे ही थे कि उनकी नजर कॉपी में लिखी चिट्ठी पर गई। लिखा था-‘ मुझे 75 फीसदी चाहिए। आपकी तबियत खुश कर दूंगा। मेरा मोबाइल नं. .................... है।’’
मनसुख की अंगुलियां मशीन बन गई। झटपट मोबाइल उठाया और छात्र का नम्बर दबा दिया। दूसरे छोर से जैसे ही आवाज आई मनसुख ने साहस बटोरा और बोले ‘तुमने अपनी कॉपी में मोबाइल नम्बर लिखा है’’ छात्र ने स्वीकारा, ‘‘यस सर!’’ आदेश करें। मनसुख ने ऐसे कहा जैसे छात्र पर उनकी रकम पहले से जमा हो............‘दो हजार रु का रिचार्ज कूपन डलवा दो।’ मनसुख ने फोन पटका ही था कि उनके सैल में एसएमएस की घन्टी बजी। सन्देश पढ़ा। लिखा था ‘28 रू. थे। अब 2028 रू0 हैं।’’ मनसुख अपने हुनर पर मन्दमन्द मुस्काए पर दबी जुबान से एक बार फिर बोले-‘अन्ना मुझे माफ करना।’’
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जन्तर मन्तर पर धरने पर बैठे अन्ना को देखने-सुनने प्रो0 मनसुखलाल भी गए थे। उनके कलेजे में बरसों से दबी-बैठी नैतिकताओ में उबाल आ गया। कई प्रण एक साथ किए। एक भी क्लास नहीं छोेड़ेंगे। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ईमानदारी से करेंगे। सामाजिक जीवन में पुराने सिद्धान्त ‘न घूस लो न घूस दा’े पर चलेंगे। इसी उधेड़बुन में मनसुळलाल दिल्ली स्टेशन पहुंचे तो आगरा जाने वाली टेªन ने सीटी मार दी। मनसुख भागे। सामने थ्री टियर का डिब्बा था। चढ़ गए।
साधारण टिकिट और डिब्बा रिजर्व/टीसी को आना ही था। काले कोट को देखकर मनसुख की सांसे ऊपर नीचे होनेे लगी। रसीद काटने पर आमादा टीसी से प्रो0 मनसुख ने रिजर्व डिब्बे में चढ़ने की मजबूरियां गिनाई।अध्यापकों पर रहम करने की विनम्र अपील की। घाट घाट का पानी पीने वाला टीसी टस से मस न हुआ। तब मनसुख झुके। फौरन सौ का पत्ता निकाला और टीसी को चलता किया। मनसुख के कलेजे की नैतिकता ने हिचकी ली। बोले ‘अन्ना मुझे माफ करना।’
अगले दिन मनसुख कॉलेज में शिक्षक संघ की बैठक में पहुंचे। डी.ए. के एरियर के बिल को डी.आई.ओ.एस. का बाबू पास करने की एबज में दक्षिणा मांग रहा था। शिक्षकों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की मांग उठ रही थी। मनसुख ने जन्तर मन्तर पर बैठे अन्ना को अपनी ताकत बताया। तभी एक शिक्षक ने दुनियादारी का पाठ पढाया ‘‘बाबू बगल के कमरे में है। मात्र 50 रू0 प्रति शिक्षक चन्दा करो। दस हजार रु प्रति शिक्षक का लाभ है। जितनी देर उतनी ब्याज की हानि।’’ इस व्यावहारिक राय पर कई शिक्षकों के मुंह में मानो डाट लग गई। कुछ बड़बड़ाए। आनन फानन में बाबू की रिश्वत का चन्दा हुआ। मनसुख को यादा आया ‘जैसा देश वैसा भेष’’। तत्काल 50 रू0 जेब से निकाले और बुदबुदाए, ‘‘अन्ना मुझे माफ करना।’’
कॉलेज से घर जाते मनसुख को लगा किवह रक्तदान शिविर में टेबिल पर लेटे है और उनकी बांह में ठुंसी सुई में उनके शरीर से खून नहीं उनकी आत्मा के कण निकल रहे हैं। घर पर स्कूटर रोका तो मीटर रीडर मीटर में तांकझांक कर रहा था। बोला ‘सर आपके मीटर से छेड़छाड़ हुई है। सील टूटी है। शिकायत कर रहा हूं, यहां हस्ताक्षर करिए।’ मनसुख ने चाल चली ‘तुम्हे मालूम है अन्ना अनशन पर क्यों बैठे हैं? मीटर रीडर बोला‘ सर! इसीलिए तो अब हर काम कायदे से होगा।’ मनसुख को गान्धी की याद आई। फौरन 5 सौ का नोट निकाला और मीटर रीडर की मुठ्ठी गरम कर दी। मीटर रीडर के मुंह से शिष्टाचारवश निकला ‘नमस्कार’ लेकिन मनसुख के मुख से ‘‘अन्ना मुझे माफ करना’ही निकला ।
मनसुख को एम.एस.सी. गणित की कापियां जांचनी थी। 15 रू0 प्रति कॉपी मिलेगा। सोचा कुछ कापियां निपटा लूं। मनसुख ने लाल कलम थामी और जांचने बैठ गए। पहली काफी के आठ दस पन्न पलटे ही थे कि उनकी नजर कॉपी में लिखी चिट्ठी पर गई। लिखा था-‘ मुझे 75 फीसदी चाहिए। आपकी तबियत खुश कर दूंगा। मेरा मोबाइल नं. .................... है।’’
मनसुख की अंगुलियां मशीन बन गई। झटपट मोबाइल उठाया और छात्र का नम्बर दबा दिया। दूसरे छोर से जैसे ही आवाज आई मनसुख ने साहस बटोरा और बोले ‘तुमने अपनी कॉपी में मोबाइल नम्बर लिखा है’’ छात्र ने स्वीकारा, ‘‘यस सर!’’ आदेश करें। मनसुख ने ऐसे कहा जैसे छात्र पर उनकी रकम पहले से जमा हो............‘दो हजार रु का रिचार्ज कूपन डलवा दो।’ मनसुख ने फोन पटका ही था कि उनके सैल में एसएमएस की घन्टी बजी। सन्देश पढ़ा। लिखा था ‘28 रू. थे। अब 2028 रू0 हैं।’’ मनसुख अपने हुनर पर मन्दमन्द मुस्काए पर दबी जुबान से एक बार फिर बोले-‘अन्ना मुझे माफ करना।’’
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