खून की पुकार
अशोक बंसल
भविष्य के सपने बुनने में अपार सुख मिलता है.जब सपने सच हो जाते हैं तो अतीत में झाँकने का अपना अलग आनंद है.आस्ट्रेलिया वासी जेम्स अपने अतीत के सुख की तलाश में सात समंदर पार भारत में उ.प्र के जिले बस्ती के पास एक गाँव रघुनाथपुर की धूल बड़े शिदत से फांक रहा है. जेम्स यहाँ दूसरी बार आया है. एक सौ दस वर्ष पूर्व इसी गाँव से जेम्स के पूर्वजों में रामपाल नाम का एक व्यक्ति रोटी रोजी की तलाश में फिजी गया था.पूर्वजों में कुछेक सदस्य गाँव में रह गए थे. जेम्स की रूचि अपने रिश्तेदारों की खेरिअत जानने और उनकी मदद करने की है.
१५० वर्ष पूर्व ब्रिटिश कोलोनी फिजी में गन्ने की खेती के लिए मजदूरों का टोटा था. गोरे फार्म मालिकों ने भारत की गोरी हुकूमत पर दवाव बनाया और भारत से मजदूरों का विधिवत निर्यात शुरू हुआ. मद्रास और कलकत्ता के बंदरगाहों से फिजी के लिए ये मजदूर भेड़ बकरियों की तरह लादे जाते थे. सन १८७९ से सन १९१६ तक मजदूरों के लदान का सिलसिला अनवरत जारी रहा. इन ३७ सालों में ४२ जहाजों ने फिजी के ८७ चक्कर लगाये और ६० हजार से ज्यादा दाने दाने को मोहताज भारतियों को गुलामी से बदतर जिंदगी जीने के लिए फिजी पहुँचाया. गांधीजी के प्रेरणा पर पत्रकार शिरोमणि बनारसी दास चतुर्वेदी ने सी .एफ .एंड्रूज के साथ मिलकर फिजी के प्रवासी भारतियों पर होने वाले अत्याचारों का खुलासा सर्वप्रथम अपनी लेखनी से किया था.
इन्ही वेवश लोगो में जेम्स के पूर्वज रामपाल थे जो पेट की आग बुझाने सन १९०० में फिजी आये थे. जेम्स को इन सब एतिहासिक बारीकियों का इल्म है.जेम्स तो 'बस खून पानी से ज्यादा गाड़ा होता है' कहावत को चरितार्थ करने में तल्लीन है.
जेम्स से मेरी मुलाकात आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में हुई. मेलबर्न से ३० कि .मी. दूर स्थित उपनगर पॉइंट कुक के एक पार्क में अचानक हुई. वह अपनी पत्नी और दो बच्चो के साथ पतंग बाजी का लुफ्त ले रहा था. मेलबर्न में मेने पतगें उड़ती न देखी और न सुनी पर जेम्स के पतन प्रेम ने मेरी उत्सुकता में इजाफा कर दिया. मेरे कदम बरबस ही जेम्स की तरफ मुड गए.जेसे ही मेने अपने भारतीय होने की बात कही उसने बिजली की गति से मेरी ओर हाथ बढाया .जेम्स के व्यवहार में आत्मीयता टपकने लगी . उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बताया की उसके पूर्वज बस्ती के थे. पिछले ५ वर्षों से वह आस्ट्रेलिया की नागरिकता के साथ मेलबर्न में बसा है. गोरे लोग अजनबियों से जल्द ही घुलने मिलने में परहेज रखते है.लेकिन जेम्स की रूचि मुझमें उतनी ही दिखाई दी जितनी मेरी उसमे.जेम्स ने पार्क के सामने स्थित अपने मकान में काफी पीने का न्योता दिया.जेम्स ने बताया की ११० वर्ष पूर्व रामपाल नाम के उसके पूर्वज फिजी आये थे.उनपर और उनकी २-३ पीड़ियों पर क्या गुजारी उसे अच्छी तरह मालूम है . इन शोषित पीड़ित भारतीय मजदूरों को उनके हक़ की लड़ाई के लिए सी. एफ एंड्रूज को गांधीजी ने भारत से फिजी रवाना किया था. . जेम्स के बाबा इंग्लेंड गए ,अर्ग्रेज महिला से शादी की और वहीँ बस गए. जेम्स कम्प्यूटर में महारत हासिल कर नोकरी की तलाश में आस्ट्रेलिया आ गया.
उसके पिता अक्सर भारत से अपने पूर्वजों के फिजी आने की और बस्ती में अपने खानदानियों के होने की चर्चा करते थे. इन्ही चर्चाओं से जेम्स के खून में अपनेपन का उबल आया .पिछले साल वह पहली बार भारत आया . उसका मकसद अपने पूर्वजों को तलाशना था . संयोग से बस्ती के एक थाने में रखे जर्जर रिकार्ड में रामपाल का नाम फिजी जाने वाले मजदूरों की लिस्ट में मिल गया. बड़ी मेहनत -मशकत के बाद गाँव में रिश्तेदारों की पहचान हो गयी..जेम्स उनकी निर्धनता देख दंग रह गया. मेलबर्न वापस आकार वह काफी दिनों तक बैचेन रहा.उसने प्रण किया की वह उनकी आर्थिक मदद करेगा.अगस्त २०११ में फिर से जेम्स भारत आकर बस्ती के अपने गाँव रघुनाथपुर (बस्ती से सिर्फ ६ किलोमीटर ) गया. रिश्ते का चाचा किसी अपराधिक मामले में जेल में था.वह चाची को कुछ रकम देकर मेलबर्न चला गया.
यह सब बताते जेम्स कई बार भावुक हुआ,उसके नयनों को नम होते मैने कई बार देखा. मुझे तनिक देर को आत्म ग्लानि हुई की मै आसपास बिखरे अपने बेहद करीब के विपन्न रिश्तेदारों से मुख मोड़ता रहा हूँ. लेकिन जेम्स ११० वर्षों बाद भी अपने खून की पहचान के लिए बार बार समन्दर लाँघ रहा है..मानवीय संवेदनायों में इतना बड़ा अंतर देख मेरी पलकें जमीन में गड़ गईं ,मेरा सर कई बार घूमा.मुझे मेरी पलकों पर भारी भरकम पत्थर बंधे होने का अहसास हुआ.
इतना ही नहीं जेम्स अपने पूर्वजों का दिया नाम संकर अपने नाम के साथ जोड़ने में गर्व महसूस करता है. गूगल पर जेम्स संकर को दुनिया देख सकती है. वह कंप्यूटर की एक विशिष्ट तकनीक का बेताज बादशाह जो है. इंग्लेंड में पैदा हुए जेम्स संकर परिवार ने पूरी तरह हिन्दू धर्म अपना रखा है.घर में बने मंदिर में अनेक देवी देवता प्रतिष्टित हैं.राम भक्त हनुमान की पतिमा के सामने हनुमान चालीसा रखा है .जेम्स हिंदी न के बराबर जनता है पर हिंदी का हनुमान चालीसा उसकी पसंद है और ताकत भी. उसके घर में दीवाली -होली ,जन्माष्टमी सभी त्यौहार मनाये जाते हैं.जेम्स धर्मभीरु नहीं, न ही धर्म उसकी मानसिक या भोतिक जरुरत है. वह तो देवी- देवताओं ओर तीज- त्योहारों को अपने पूर्वजों के देश की सांस्कृतिक विरासत मानकर कलेजे से लगाये हुए है.
जेम्स स्वीकार करता है की ११० वर्ष पूर्व फिजी की जो भूमि उसके पूर्वजों के लिए अभिशाप थी वही भूमि उनके वंशजों के लिए वरिदान सवित हुई है.
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अशोक बंसल,१७ बलदेव पुरी एक्सटेंशन मथुरा. मोब. 9837319969,
bahut sundar. badhai sweekaren!
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