Saturday, April 21, 2012

मंडी बाबाओं की


व्यंग
मंडी बाबाओं की
अशोक बंसल
"व्यापार कोई हो ,यदि आपको पैर जमाने हैं तो लीक से हटकर काम करो .अन्यथा मात खा जाओगे ", बेरोजगारों की बैठक में चचा सुखराम का प्रवचन जारी है .चचा को सुख मिलता है भटकते -मटकते नैजवानों को सही रस्ते पर लाने में .चचा खान है नया धंधा शुरू करने और फिर उसे जमाने की .आत्मप्रचार से दूर रहकर जनसेवा में जुटे चचा का यह भेद न जाने कहाँ से लीक हो गया कि निर्मल बाबा असल मायने में चाचा के ही चेले हैं .  प्रतिस्पर्धा से खचाखच बाबागिरी के धंधे में नया हथकंडा  और नई शैली  अपनाने की सलाह निर्मल बाबा को चचा ने ही दी थी .तभी तो चचा की बैठक में बेरोजगारों का मानो मेला  लगा है .

निर्मल का धंधा ऐसा सटीक रहा कि कोई भी सामाजिक और सरकारी कानून उनका बाल बांका भी नहीं कर पाया . टीवी वाले पहले बाबा के प्रचार में उनका समागम दिखाते हैं और फिर दबी जुबान से नारा लगाते हैं कि "अन्धविश्वाश समाज की प्रगति में वाधक है ." चचा ने धंधे की जुगाड़ में जमा हुए बेरोजगारों को बताया कि वैश्वीकरण के युग में दुमही के ही नहीं इंसान के भी दो मुंह होने चाहिए . इसी सिध्दांत पर अमल कर नेता और टीवी चैनल तरक्की कर रहे हैं .चाचा बोले कि मथुरा-वृन्दावन बाबाओं की  मंडी है . हर बाबा का अपना निजी स्टाइल है इसीलिए उनके अलग अलग भक्त है .नेता लोग इस भीड़ को देख मुंह में  ऐसे पानी भर लाते है जैसे गोलगप्पे की दूकान को देखकर महिला के मुंह में पानी आ जाता है . "कलयुग जाएगा,सतयुग आयेगा ",यह नारा धवल वस्त्रधारी एक बाबा का है .युग बदल गए पर कलयुग नहीं गया .एक सिरफिरा भक्त बाबा से जुबान चला बैठा कि बाबा सतयुग नहीं आया तो बाबा बोला "अन्दर के नेत्र खोल ,यह नारा मैंने अपने लिए बोला था .सच हो गया .मेरा सतयुग वर्षों से मेरे साथ चल रहा है "  चचा ने रहस्य  खोला कि बाबा से सवाल -जबाब करने वाला चेला और कोई नहीं ,निर्मल बाबा ही थे . निर्मल की समझ में सतयुग का मंत्र आ गया था .

चचा समझा रहे हैं कि बाबाओं के मंत्र को पकड़ो  . निर्मल बाबा कह रहे हैं कि काला पर्स खरीदो तो इसके पीछे कोई मंत्र है .जो पकड़ लेगा वह निर्मल जैसा दूसरा बाबा हो जाएगा.दरअसल हमारे देश की धरती उपजाऊ है .इसमें बाबाओं की खेती बिना खाद-पानी के संभव  है .
चाचा के  प्रवचन के वक्त सब मन्त्र मुग्ध थे .इतने में एक नौजवान गेरूआ वस्त्र का थान ले आया .चचा की त्यौरियां चढ़ गयीं ,बोले " जमाना बदल गया है .बाबा की पहचान अब गेरूआ से नहीं होती .यह पहचान दिमाग से होती है . बाबागिरी के धंधे के निर्मल आदर्श  है .उसके कृतित्व -व्यक्तित्व का बारीक अध्ययन करो .कामयाबी तुम्हारे कदम चूमेगी ,जाओ ,आगे बढ़ो "
---------------------------------------------------------अशोक बंसल ,9837319969

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