Monday, September 21, 2009

ब्राह्मी लिपी के माहिर हैं पांचवीं पास मूलचंद

इंसान के इरादे बुलंद हों तो कुछ भी असंभव नहीं है। इस कहावत को सच सावित कर दिया है 53 साल के मूलचंद ने। मूलचंद मथुरा संग्रहालय में प्रदर्शित प्राचीन कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि की इबादत ऐसे पढते हैं जैसे हिंदी में लिखी गई चिट्ठी । हैरत की बात है कि मूलचंद सिर्फ पांचवीं पास है। वे मथुरा संग्रहालय में पिछले35 साल से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर तैनात है। ब्राह्मी का जन्म मौर्य काल (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व ) का माना जाता है। छठी ताब्दी के गुप्त काल तक बनी मूर्तियों, सिक्कों व शि‍लालेखों पर ब्राह्मी लिपि का ही इस्तेमाल किया गया है। सम्राट अशोक के सभी 14 शि‍ला लेखों पर खुदी इबारत ब्राह्मी लिपि में है। पाली और ब्राह्मी को पढने की कहानी काफी दिलचस्प है। मूलचंद ने बाताया कि शुरूआती दौर में उनकी डयूटी संग्रहालय की वीथिका में लगाई गई थी। तब बर्लिन विश्‍ववि‍द्यालय की एक वयोवद्व प्रोफेसर संग्रहालय की मूर्तियों का बारीक अध्ययन करने आती थी। साल में पंद्रह दिन व मथुरा संग्रहालय में रूकती थी। मूलचंद ने बताया कि वे मूर्तियों पर लिखी इबात पर चढी धूल हटाते थे। प्रोफेसर टार्च की रोनी में ब्राह्मी लिपि की इबारतें पढ़ती थी। इसे सुनते हुए मूलचंद की दिलचस्पी बढ़ी। एक कापी बनाकर उन्होंने ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला के आगे हिंदी वर्णमाला लिख ली। धीरे-धीरे उन्होंने मूर्तियों पर लिखी इबादत को तेजी से पढना सीख लिया। मूलचंद के मुताबि‍क अब वे ब्राह्मी लिपि में कुछ भी लिख सकते हैं।

प्राचीन मूर्तियों , मथुरा कला, भारतीय संसकृति और इतिहास की जानकरी रखने वाले त्रुघ्न र्मा के मुताबिक मूलचंद की प्रतिभा क कोई सानी नहीं है।लेकिन उसकी प्रतिभा की उपेक्षा हुई है। एक दक पहले एक निदेक ने मूलचंद को कलाकृतियों पर खुदी ब्राह्मी लिपि का अध्ययन करते देखकर गुस्सा आ गया था। उन्होंने मूलचंद को मूर्तियों की देखरेख के काम से हटा कर साइकिल स्टैंड पर भेज दिया। दरअसल निदेक को ब्राह्मी लिपि का कोई ज्ञान नहीं था।

मूलचंद ने बताया कि इस 2300 साल पुरानी लिपि को सबसे पहले 1839 में जेम्स प्रिंसेप नाम के अंग्रेज ने पढा था। 2006 में ब्राह्मी लिपि के उद्भव और विकास पर भाषण देने मथुरा संग्राहलय आए राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेक डा. आर.सी र्मा मूलचंद जैसे अशि‍क्षित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की प्रतिभा देखकर चौंक गए। उन्होंने मूलचंद के प्रमोन की भरसक कोशि‍श की लेकिन कामयाबी नहीं मिली।आर्थिक अभाव के कारण मूलचंद अपने पुत्रों को अच्छी शि‍क्षा दिलवाने में असमर्थ है।

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