Tuesday, February 9, 2010

आटे में नमक



                      
भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बेईमानी, दलाली आदि शब्द बेमानी हो गए हैं। इन शब्दों पर गौर फर्माना समय की बर्बादी है। एक जमाना था जब समझदार लोग इन शब्दों को हेय दृष्टि से देखते थे और और इन शब्दों को सीने से चिपकाकर चलने वालों से घृणा करते थे। 
     

यह बात मैं अपने एक नौजवान मित्र को सुना रहा हूँ। और अतीत के स्वर्णिम काल में गोते लगा कर आनन्दित हो रहा हूँ। मैंने सोचा कि मेरा मित्र मेरे प्रवचन को सुन मेरे प्रति श्रध्दानत् हुआ होगा और मेरे प्रति उसके  चेहरे पर प्रशंसा के भाव होंगे लेकिन ऐसा कुछ न था। मित्र के चेहरे पर बोरियत के चिन्ह स्पस्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे। उसने क्षमा याचना करते और वक्त की दुहाई देकर विदा माँगी और चलते बना। मित्र की यह हरकत मुझे अटपटी लगी।
    

 ऐसे गफलत के क्षणों में मुझे चचा सुखराम याद आए। हकीम लुकमान शरीर के अन्दर के विकारों को दूर करने के लिए विख्यात थे। मैं चचा को मन के विकार को भगाने का सबसे श्रेष्ठ मनोचिकित्सक मानता हूँ।
     

मेरे माथे पर पड़ी लकीरें देख चचा समझ गए कि आज फिर मूर्ख नैतिकता और अनैतिकता के लफड़े में पड़ गया। जीवन के हर क्षेत्र में घुस आए भ्रष्टाचार रूपी दानव की चर्चा करूँ, इससे पूर्व चचा चालू हो गए बोले, 'देख बेटा ! मानव योनी में जन्म लिया है तो मस्त रहने के फंडे सीख। समय देख और समय की धार देख। तभी मस्त रहेगा।'
    

चचा पुरानी कहावतों का उच्चारण तो करते ही हैं, प्रचलित कहावतों में तनिक हेर-फेर करने में भी माहिर हैं। 
    मैं चचा से बतिया रहा था तभी पड़ोस की मिसेज खन्ना का प्रवेश हुआ। बिना किसी प्रसंग के बोली, 'चचा अपना एम.एल.ए. कालूराम कमाल का है। मेरी कालोनी की सब सड़कें सी.सी. रोड हैं। एक पत्थर सड़क बनने से पहले और दूसरा सड़क बनने के बाद लगवाता है। नाम खुदे पत्थर से मालाओं से लदा-फदा एम.एल.ए. कालू जब रेशम का पर्दा सरकाता है तो जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से सभी की बाँछें खिल जाती हैं।
    

चचा ने मिसेज खन्ना की बात सुन 'बहुत खूब' कहा पर मैंने नाक भौं सिकोड़ी क्योंकि मैं एम.एल.ए. कालू की करतूतों की कालिख से बखूबी परिचित था। साइकिल से राजनीति करने वाला कालू आज करोड़ों में खेल रहा है। विधायक निधि से कोई काम करवाता है तो 20 फीसदी कमीशन ठेकेदारों से वसूलता है। मैंने मिसेज खन्ना को टोका 'मिसेज खन्ना! आप एक भ्रष्ट नेता को महिमामंडित न करो तो अच्छा है।' मिसेज खन्ना बोली-
'हाँ भाई-साहब आप जैसे ईमानदार खूब देखे। न काम के न काज के, बस हैं तो सौ मन अनाज के। बीस बरस से कालोनी वाले नरक भुगत रहे थे। अब कम से कम बच्चे-औरतें सड़क पर बिना गिरे चलने फिरने का सुख तो भोग रहे हैं।' 
    

मैं सोचने लगा कि अब भ्रष्टाचार और बेईमानी जैसे शब्दों के अर्थ बदलने लगे हैं। मुझे दु:खी देख चचा  मिसेज खन्ना की ओर मुखातिब हुए और बोले - ' मिसेज खन्ना! आटे में नमक चलेगा। भैंस समेत खोआ करने की इजाजत मैं भी नहीं देता। 
                                      
   
    मिसेज खन्ना समझ गर्इं और अपने प्रिय एम.एल.ए. कालू को एक तमगा देती बोली- 'चचा अपुन का कालू भी 'भैंस समेत खोआ' के खिलाफ है।'     

             
                    



                    

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