Saturday, February 13, 2010

स्कूल ऑफ लीडरशि‍प



     मेरे मित्र ने खबर दी कि केंद्र सरकार शीघ्र ही जिला स्तर पर एक नायाब किस्म का स्कूल खोलने जा रही है। शि‍क्षा के विस्तार की सूचना पर मैं हर्षित था पर नायाब शब्द पर मैं चौंक पड़ा। तब मित्र ने स्पष्ट किया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का लोकतंत्र कभी-कभी समुद्र में आए तूफान में फंसे जहाज की तरह डगमगाने लगता है। ऐसे में लोकतंत्र की मजबूती के लिए नेताओं के शि‍क्षित होने की जरूरत है। मित्र ने बता दिया कि शि‍क्षा से उसका आशय किसी विश्‍वविद्यालय की डिग्री या पी.एच.डी. से नहीं है। बल्कि उन गुरू-मंत्रों को सिखाने से है जिनमें पारंगत होने पर नेता के मन में छिपे मंसूबे को न तो जनता जान पाएगी और न ही टी.वी.-अखबार वालों को इसकी भनक लगेगी।
 
  शि‍क्षा के इस नवीन मन्दिर का नाम होगा 'स्कूल ऑफ लीडरशि‍प'। 'स्कूल ऑफ लीडरशि‍प' को नेता उत्पादक कारखाना भी कह सकते हैं।
   
 जनता नेताओं के व्यवहार से दु:खी है। सड़क हो या घर, विधानसभा हो या संसद, इन सभी स्थानों पर नेताओं द्वारा प्रदर्शि‍त ऊटपटाँग व्यवहार से नेतागिरी के धन्धे की साख गिरी है। लीडरशि‍प स्कूल के पाठयक्रम में ऐसी षिक्षा का शामिल किया गया है जिससे नेताओं के खाने कमाने के धन्धे पर कोई चोट न पड़े और दुनिया के सामने वे एक चरित्रवान, ईमानदार और देशभक्त नेता के रूप में जाने जाँए। पर्दे के पीछे के सच को छुपाने में वे माहिर बन जाँए।
 

 टी.वी. और अखबार वाले लोकप्रिय नेताओं की इसी कमजोरी का लाभ उठा रहे हैं। पत्रकारों द्वारा नेताओं के लिए किए गए 'स्टिंग ऑपरेशन' ने भारतीय लोकतंत्र की छवि को बेहिसाब चोट पहुँचाई है। पाठयक्रम में 'स्टिंग ऑपरेशन से कैसे बचें' विषय पर पूरा चेप्टर ही नहीं होगा बल्कि अनेक सेमीनार, भाषण आदि होंगे। इन आयोजनों में 'स्टिंग ऑपरेशन' में फंस चुके नेताओं को विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाकर उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाएगा।

  'स्कूल ऑफ लीडरशि‍प' में फिलहाल दो ही कोर्स प्रारम्भ किये जाऐंगे। एक वर्षीय डिप्लोमा और दूसरा दो वर्षीय डिग्री कोर्स। एक वर्षीय डिप्लोमा में गाँव और शहर की नेतागिरी के प्रारम्भिक दौर की ऊँच-नीच सिखाई जाएगी जबकि डिग्री कोर्स में विधायक और सांसद के सपने देखने वाले नेताओं की शि‍क्षा का प्रबन्ध होगा।
 

 मेरे मित्र ने डिप्लोमा और डिग्री दोनों कोर्स की फीस भी निर्धारित की है। फीस लेने में उदारता और दूरदृष्टि के सिध्दान्त को लागू किया गया है।
 
 यह बात तय है कि नेता बनने के इच्छुक छात्रों में अनेक ऐसे होंगे जिनकी जेबें खाली होगी। ऐसे लोगों के लिए एक कानूनी अनुबन्ध का प्रावधान होगा। इस प्रावधान के अनुसार छात्र की फीस 'एजूकेशन लोन' के रूप में दी जाएगी। छात्र इस लोन को नेता बनने के बाद चुकाएगा। नेतागिरी चमकने के बाद ऐसी रकम वे अपने विद्यामन्दिर को देंगे जिसका मूल्य लोन की रकम से दोगुना या तीन गुना होगा।

स्कूल के प्राचार्य कक्ष में लगी खूबसूरत पट्टिका पर ऐसे उदारमना नेताओं का नाम प्रमुखता से लिखा जाएगा। भारतीय लोकतंत्र का एक उज्जवल पक्ष यह है कि चुनाव जीतने के बाद नेता का रूतबा ही नहीं बढ़ता, साल के 365 दिन खुद-ब-खुद सुधरने लगते हैं। ऐसे में अपने विद्यामंदिर को कर्ज की रकम चुकाने में कोई दिक्कत नहीं, खुशी होगी।
 

 फैकल्टी का टोटा हर अच्छे शि‍क्षण संस्थान में देखा जा रहा है। मेरे मित्र ने इस समस्या का समाधान बिजिटिंग फैकल्टी के माध्यम से करने की सोची है। लालू सरीखे नेताओं को इस फैकल्टी में शामिल किया जाएगा।
 
           
                   






                 







             











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