हमलों की धमक थमने के बाद मेलबर्न
डेड वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया का शहर मेलबर्न समाचारपत्रों में खूब सुर्ख़ियों में रहा. इस खूबसूरत शहर में रहने वाले भारतीय छात्रों पर किये गए जानलेवा हमलों की खबरों से रंगभेद के सर उठाने की चर्चा गर्म हो गयी. सेंकडों देशवाशियों ने यहाँ. रह रहे अपने लाडलों को वापस बुला लिया या उन्हें सावधानी से रहने की सक्त हिदायतें दी. मेलबर्न से आयीं खबरों ने भारत सरकार पर दबाब बनाया की वह आस्ट्रेलिया सरकार से दो टूक बात करे. विक्टोरिया सरकार के हाथ के तोते उड़ गए . सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि की चिंता के साथ पर्यटन के धंधे पर चोट पड़ती दिखाई दी..ऐसा हुआ भी. भारतीय छात्रों के साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या गिरी. अपने देश में दहशत का माहोल पैदा करने वाले इन हमलो से पूर्व मैं मेलबर्न के दो चक्कर लगा चुका था.तब में नितांत अकेला इस शहर की खूबियों को अपनी नज़रों में केद करता फिरता था. अपनी काली काया पर किसी गोरे रंग का न कोई खोफ था और न कोई दहशत .दो दो माह के दो प्रवास में मैं रेल, बस, ट्राम मैं घूमता,जगह जगह दिखाई देते समुद्र में अठखेलियाँ करती उन्मुक्त लहरों को निहारता.अनजान देश की जीवन शेली, खानपान,भाषा इतिहास अदि को जानते वक्त गोरे काले का कोई विचार मेरे दिमाग में किसी भी क्षण नहीं कोंधा. पिछले एक पखवाड़े से में मेलबर्न में तीसरी बार डेरा डाले हुए हूँ. लेकिन इस बार मेरा मानस बदला हुआ है. में समझ नहीं पा रहा की में गोरे और काले में कोई अंतर तलाशने में क्यों लगा हूँ.. मेलबर्न के उन उपनगरीय इलाकों में तनिक देर के लिए ठहर सा जाता हूँ जहाँ पर हुए हमलों की ख़बरें मैने अपने शहर में पड़ी थीं. . . मैं हेरत में हूँ की बहुचर्चित हमलो की धमक मेलबर्न के भारतवंशियों में नहीं. दिन रत मेहनत कर साफ सुथरा और सेहतमंद जीवन जीने वाले भारतीय इस गुजरे हुए कलुषित कल पर चर्चा भी नहीं करना चाहते.इनके मन में न दहशत है और न पलायन का विचार. करीब ३० लाख की आबादी वाले शहर मेलबर्न में १ लाख भारतीय है. इनमे हिंदी भाषी लोगों की संख्या अच्छी खासी है. फेडरेशन स्कायर पर स्थित रेडिओ स्टेशन की ईमारत से ६० से ज्यादा भाषाओँ में प्रसारण होता है. हिंदी श्रोताओं में इसके प्रति गजब का उत्साह है. डाक्टर दिनेश श्रीवास्तव यहाँ हिंदी प्रसारण के अधिकारी रहे हैं. चार दशक से यहाँ बसे दिनेशजी गुजरे साल की फसाद की घटनाओं को किसी मायने में रंगभेद प्रेरित नहीं मानते. दिनेशजी का कहना है की आस्ट्रेलिया भारत वाशियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. ऐसे अनेक लोग यहाँ आकर बसे है जिन्हें अपने देश की संस्कृति और कानून और पराये देश की संस्कृति कानून में भेद करने का मोका नहीं मिला . ऐसे लोग अपने देश में कानून की परवाह नहीं करते .अपना देश अपना है लेकिन पराये देश में हम कानून का पालन करके ही चेन से रह सकते है. अनेक घटनाओं की तह में मुख्य वजह यही थी. अनेक भारतीय विभिन्न अपराधों में यहाँ जेल में हें लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की भारतीय छात्रों पर हुए कुछ हमलों की वजह लूटपाट के साथ रंगभेद की प्रवर्ति रही. विक्टोरिया सरकार ने इसे स्वीकार किया और त्वरित कार्यवाही भी की.अनेक फर्जी विशय्विधालायो को बंद किया ,अनेक गेरजरूरी कोर्सों को बंद किया.स्थायी बाशिंदे बनने यानि पी. आर. की जुगाड़ कर यहाँ बसने वालो की पहचान की गयी.पी. आर .मिलने पर यहाँ ऐसी अनेक सुविधाएँ मिल जाती हैं जिनकी कल्पना हम अपने देश में नहीं कर सकते.सरकार ने पी आर के कानूनों को भी सक्त किया है.फिर भी रंगभेद पर आस्ट्रेलिया में विवाद जारी है. ऑस्ट्रलियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ क्रिमिनोलोजी द्वारा किये गए एक शोध में भारतीय छात्रों पर किये गए हमलों में रंगभेद का तत्व नहीं पाया गया .सरकार ऐसे शोध करने वालों को प्रेरित कर RAHI HAI .यह बात अलग HAI की शोध में निकले निष्कर्षों का अनेक छात्र विरोध भी कर रहे हैं. सामाजिक कार्यों में लगे एक भारतीय का कहना HAI की प्रबुद्ध वर्ग में रंगभेद पर नए सिरे से छिड़ी वहस भी सरकार पर भारतीय छात्रो की सुरक्षा के बारे में सोचने पर मजबूर कर रही है. इसके साथ साथ सरकार ने यहाँ रहने वाले भारतियों के विभिन्न संगठनों को सुरक्षा का भरोसा भी दिया है.यहाँ के भारतीय सरकार के इस भरोसे पर यकीं कर रहे हैं और यही कारण है की उन्हें हमलों की धमक सुनाई नहीं दे रही . अमन और चेन की वंसी बजा कर जीने वाले भारतियों का कहना है की आस्ट्रेलिया बहुसंस्कृति को बड़ाबा देने वाला देश है. २३० देशों के लोग यहाँ बसे हैं. हमारे देश के लोगों के लिए प्रतिभा प्रदर्शन और धनोपार्जन के अनेकानेक अवसर हैं. अंगद की तरह पैर जमाये भारतियों को अपने देश और अपनों की याद अवश्य सताती है.उसकी भरपाई वे राष्टीय पर्व व् धार्मिक उत्सवों को मिलजुलकर मना कर कर लेते हैं.पिछले दिनों विक्टोरिया सरकार ने यहाँ छोटे मोटे डिप्लोमा कोर्सों के लिए आने वाले भारतीय छात्रों में (पिछले ६ माह में) २० फीसदी की गिरावट और विशव विधालय की डिग्री के लिए २ फीसदी की बढोतरी दर्ज की है.सच्चाई यह है की यह आंकड़े हमलों की धमक नहीं वरन विक्टोरिया सरकार के दूरगामी सोच का त्वरित व् सकारात्मक परिणाम है.
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डेड वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया का शहर मेलबर्न समाचारपत्रों में खूब सुर्ख़ियों में रहा. इस खूबसूरत शहर में रहने वाले भारतीय छात्रों पर किये गए जानलेवा हमलों की खबरों से रंगभेद के सर उठाने की चर्चा गर्म हो गयी. सेंकडों देशवाशियों ने यहाँ. रह रहे अपने लाडलों को वापस बुला लिया या उन्हें सावधानी से रहने की सक्त हिदायतें दी. मेलबर्न से आयीं खबरों ने भारत सरकार पर दबाब बनाया की वह आस्ट्रेलिया सरकार से दो टूक बात करे. विक्टोरिया सरकार के हाथ के तोते उड़ गए . सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि की चिंता के साथ पर्यटन के धंधे पर चोट पड़ती दिखाई दी..ऐसा हुआ भी. भारतीय छात्रों के साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या गिरी. अपने देश में दहशत का माहोल पैदा करने वाले इन हमलो से पूर्व मैं मेलबर्न के दो चक्कर लगा चुका था.तब में नितांत अकेला इस शहर की खूबियों को अपनी नज़रों में केद करता फिरता था. अपनी काली काया पर किसी गोरे रंग का न कोई खोफ था और न कोई दहशत .दो दो माह के दो प्रवास में मैं रेल, बस, ट्राम मैं घूमता,जगह जगह दिखाई देते समुद्र में अठखेलियाँ करती उन्मुक्त लहरों को निहारता.अनजान देश की जीवन शेली, खानपान,भाषा इतिहास अदि को जानते वक्त गोरे काले का कोई विचार मेरे दिमाग में किसी भी क्षण नहीं कोंधा. पिछले एक पखवाड़े से में मेलबर्न में तीसरी बार डेरा डाले हुए हूँ. लेकिन इस बार मेरा मानस बदला हुआ है. में समझ नहीं पा रहा की में गोरे और काले में कोई अंतर तलाशने में क्यों लगा हूँ.. मेलबर्न के उन उपनगरीय इलाकों में तनिक देर के लिए ठहर सा जाता हूँ जहाँ पर हुए हमलों की ख़बरें मैने अपने शहर में पड़ी थीं. . . मैं हेरत में हूँ की बहुचर्चित हमलो की धमक मेलबर्न के भारतवंशियों में नहीं. दिन रत मेहनत कर साफ सुथरा और सेहतमंद जीवन जीने वाले भारतीय इस गुजरे हुए कलुषित कल पर चर्चा भी नहीं करना चाहते.इनके मन में न दहशत है और न पलायन का विचार. करीब ३० लाख की आबादी वाले शहर मेलबर्न में १ लाख भारतीय है. इनमे हिंदी भाषी लोगों की संख्या अच्छी खासी है. फेडरेशन स्कायर पर स्थित रेडिओ स्टेशन की ईमारत से ६० से ज्यादा भाषाओँ में प्रसारण होता है. हिंदी श्रोताओं में इसके प्रति गजब का उत्साह है. डाक्टर दिनेश श्रीवास्तव यहाँ हिंदी प्रसारण के अधिकारी रहे हैं. चार दशक से यहाँ बसे दिनेशजी गुजरे साल की फसाद की घटनाओं को किसी मायने में रंगभेद प्रेरित नहीं मानते. दिनेशजी का कहना है की आस्ट्रेलिया भारत वाशियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. ऐसे अनेक लोग यहाँ आकर बसे है जिन्हें अपने देश की संस्कृति और कानून और पराये देश की संस्कृति कानून में भेद करने का मोका नहीं मिला . ऐसे लोग अपने देश में कानून की परवाह नहीं करते .अपना देश अपना है लेकिन पराये देश में हम कानून का पालन करके ही चेन से रह सकते है. अनेक घटनाओं की तह में मुख्य वजह यही थी. अनेक भारतीय विभिन्न अपराधों में यहाँ जेल में हें लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की भारतीय छात्रों पर हुए कुछ हमलों की वजह लूटपाट के साथ रंगभेद की प्रवर्ति रही. विक्टोरिया सरकार ने इसे स्वीकार किया और त्वरित कार्यवाही भी की.अनेक फर्जी विशय्विधालायो को बंद किया ,अनेक गेरजरूरी कोर्सों को बंद किया.स्थायी बाशिंदे बनने यानि पी. आर. की जुगाड़ कर यहाँ बसने वालो की पहचान की गयी.पी. आर .मिलने पर यहाँ ऐसी अनेक सुविधाएँ मिल जाती हैं जिनकी कल्पना हम अपने देश में नहीं कर सकते.सरकार ने पी आर के कानूनों को भी सक्त किया है.फिर भी रंगभेद पर आस्ट्रेलिया में विवाद जारी है. ऑस्ट्रलियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ क्रिमिनोलोजी द्वारा किये गए एक शोध में भारतीय छात्रों पर किये गए हमलों में रंगभेद का तत्व नहीं पाया गया .सरकार ऐसे शोध करने वालों को प्रेरित कर RAHI HAI .यह बात अलग HAI की शोध में निकले निष्कर्षों का अनेक छात्र विरोध भी कर रहे हैं. सामाजिक कार्यों में लगे एक भारतीय का कहना HAI की प्रबुद्ध वर्ग में रंगभेद पर नए सिरे से छिड़ी वहस भी सरकार पर भारतीय छात्रो की सुरक्षा के बारे में सोचने पर मजबूर कर रही है. इसके साथ साथ सरकार ने यहाँ रहने वाले भारतियों के विभिन्न संगठनों को सुरक्षा का भरोसा भी दिया है.यहाँ के भारतीय सरकार के इस भरोसे पर यकीं कर रहे हैं और यही कारण है की उन्हें हमलों की धमक सुनाई नहीं दे रही . अमन और चेन की वंसी बजा कर जीने वाले भारतियों का कहना है की आस्ट्रेलिया बहुसंस्कृति को बड़ाबा देने वाला देश है. २३० देशों के लोग यहाँ बसे हैं. हमारे देश के लोगों के लिए प्रतिभा प्रदर्शन और धनोपार्जन के अनेकानेक अवसर हैं. अंगद की तरह पैर जमाये भारतियों को अपने देश और अपनों की याद अवश्य सताती है.उसकी भरपाई वे राष्टीय पर्व व् धार्मिक उत्सवों को मिलजुलकर मना कर कर लेते हैं.पिछले दिनों विक्टोरिया सरकार ने यहाँ छोटे मोटे डिप्लोमा कोर्सों के लिए आने वाले भारतीय छात्रों में (पिछले ६ माह में) २० फीसदी की गिरावट और विशव विधालय की डिग्री के लिए २ फीसदी की बढोतरी दर्ज की है.सच्चाई यह है की यह आंकड़े हमलों की धमक नहीं वरन विक्टोरिया सरकार के दूरगामी सोच का त्वरित व् सकारात्मक परिणाम है.
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