व्यंग
कर्ज में डूबे हैं ----
अशोक बंसल
जो लोग कर्ज में डूबे रहते हैं वह चुल्लू भर पानी में नहीं डूबते और जिन्हें चुल्लू भर पानी में डूबने का डर रहता है वे कर्ज में डूबने की बात दूर कर्ज लेने की सोचने से भी डरते हैं . ऐसे डरपोक लोगों से देश नहीं चलता. किंगफिशर के मालिक विजय माल्या के कर्ज में डूबे होने के किस्सों से गरीब जनता के कान पक गए हैं लेकिन माल्या और उनके भक्तों के होंसले बुलंद हैं .बंगलौर में माल्या की 'यूबी सिटी' नाम की रियासत को देखकर लगता है कि विजय माल्या की किंगफिशर कर्जों से दबी होने की खबरे झूठीं है .
पेट भरे लोगों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह किंगफिशर को मदद दे ताकि आकाश में उड़ने वाले हवाई जहाजों की संख्या पर कोई फर्क न पड़े .नहीं तो जनता को एक जगह से दूसरी जगह जाने में दिक्कत होगी .भरे पेट के लोग अपनों को ही जनता मानते हैं और जिनके पेट कमर से लगे हैं वे उन्हें लोग नहीं , सिर्फ वोट मानते हैं और वह भी कुछ ख़ास मौकों पर जैसे चुनाव .
चचा सुखराम अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं .उनका कहना है कि किसी घटना की निंदा करने के वजाय उससे प्रेणना लेनी चाहिए .विजय माल्या कर्ज से लदे हैं फिर भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं .जितने भी धर्म ग्रन्थ हैं उन सबमें कष्ट में मनोबल में कोई गिरावट न लाने देने के सन्देश हैं . माल्या ने गीता भी पढ़ी है और गांधीजी के सच्चे उपासक भी हैं .चाचा की बैठक में चेलों की भीड़ है .चाचा ने भी माल्या जैसी दाड़ी रखी है . भकाभक दाड़ी में अपनी अँगुलियों के पोरों को घुमाते हुए चाचा बोले कि साऊथ अफ्रीका में गांधीजी की विरासत को नष्ट होने से बचाया .लाखों खर्च कर राष्ट्रपिता की अनेक चीजें खरीदीं और भारत लाये . ऐसे शख्स की यदि देश मदद करे तो कौन सी बुरी बात है . चाचा सुखराम ने समझाया कि देश आज तरक्की कर रहा है .सैंकड़ों उद्योग घराने कर्ज लेकर एक के पांच कर रहे है ,लाखों बेरोजगार खप रहे हैं .दस-बीस घराने डूब भी जांए तो तरक्की पर कोई भी प्रतिकूल असर नहीं पडेगा और न ही देश की जी.डी.पी. पर .
चाचा की बात में श्रोताओं को दम नज़र आई . सब ने फैसला किया कि वे अखबारों के 'पाठको' के पत्र कालम के माध्यम से विजय माल्या की किंगफिशर पर लदे कर्जे को माफ करने की मुहीम छेड़ेंगे और कहेंगे ----कर्ज में डूबे हैं और काम चल रहा है ,दुनिया की बही में माल्या का नाम चल रहा है .
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