Thursday, March 1, 2012

         भूतपूर्व हो जाने का दुःख

   
       अशोक बंसल    
                

             इस नश्वर   जीवन  में न जाने कितने दुःख हैं जो हमारी काया पर नश्तर  चुभोते हैं। इन दुःखों मे एक दुःख ऐसा है जिसका मुकाबला बड़े से बड़ा दुःख नहीं कर सकता। लेकिन  राहत की बात यह है यह बड़ा दुःख सिर्फ बड़ों के भाग्य में लिखा है और देश  की आम जनता इस दुःख का नाम तक नहीं जानती। इस दुःख का नाम है- भूतपूर्व हो जाने का दुःख।
     मतदान निपट गया l थकान मिट भी न पाई थी कि वोटों कि गिनती का दिन आ गया l चमचों ने जितने का  पूरा भरोसा दिया था लेकिन दूसरे राउंड में ही धराशाही हो गए ,हार गए .दो बार से विधायक थे l बड़ी मुश्किल से मंत्री बने थे l     क्षणभर में भूतपूर्व हो गए  बेचारे। बेडरूम  में जाकर करम पकड़ लिया l मारकाट और मारामारी के बीच टिकट की जुगाड़ लगाई थी।  नेताओं और उद्योगपतियों के चरणों में लमलेट होना पड़ा  लेकिन  यह  क्या  हुआ, अंगरक्षक समेट लिए प्रशासन ने। लाल बत्ती से महरूम हो गए बिचारे। पर्दे लगी गाड़ी में गरीब जनता की गरीबी देखने का अपना एक अलग ही आनन्द है। अब जनता की सेवा कैसे कर पाऐंगे बेचारे। भूतपूर्व जो हो गए।
    पुलिस चौकी से लेकर एस.पी. तक, बाबू से लेकर कलेक्टर तक किसी को भी फोन करते थे तो पहला वाक्य होता था, ‘मैं मंत्री  बोल रहा हूँ ।’ बस काफी था दूसरे छोर पर कोई क्यों न हो की हवा निकालने के लिए। फोन के चौंगे की तरफ ऑंखें गड़ाए खड़े हैं। साहस नहीं हो रहा फोन उठाने का। भूतपूर्व जो हो गए।
    परसों की बात है, मकान मालिक और किराएदार की लड़ाई का मामला था। किराएदार  मंत्रीजी  का पुराना वोटर था। वोट वाले दिन अकेले ने 25 वोट ड़ाले थे। वोटर की बहादुरी की खबर जब  उन्हें  मिली थी तो उन्होंने अपने सच्चे हिमायती को गले से लगा लिया था। मकान मालिक की  दविश  से घबड़ा कर किराएदार दौड़ा-दौड़ा अपने भूतपूर्व मंत्री के दरवाजे पर पहुचा और चौकी दरोगा को फोन करने की गुहार करने लगा। पीड़ित किराएदार की मान्यता थी कि भूतपूर्व होने पर रूपया अठन्नी का रह जाता है लेकिन उसे क्या मालूम था कि रूपया अठन्नी तो क्या धेला भी नहीं रहता।
         किराएदार ने नम्बर डायल कर चोगा भूतपूर्व को थमा दिया। भूतपूर्व मंत्री का नाम सुनते ही  दरोगा का पारा हाई हो गया।  दरोगा ने अपनी खानदानी परम्पराओं को ताक पर रखकर बडे़ कायदे और शालीनता से पूछा, ‘ आदेश  सर ?’ भूतपूर्व के कान में सिर्फ ‘सर’ शब्द गूॅजा। बस फिर क्या था, उनका छुआरा बना कलेजा फिर छत्तीस हो गया। दाढ़ी की तह में अपनी अंगुलियों के पोरे पहुॅचाते भूतपूर्व दहाड़े -‘ऐसा है दरोगा जी .........................।’ वाक्य पूरा हो इससे पूर्व दरोगा ने सलाह दी, ‘आप बाद में बात करें। कृपया फोन रख दीजिए। कोतवाल साहब का फोन आने वाला है।
     आजादी के बाद देश में हुए प्रथम चुनाव के बाद हजारों बड़े लोग भूतपूर्व हो गए हैं। आइऐ शहर की पॉश  कॉलोनी में चलते हैं। मलाल बाबू यानी भूतपूर्व मंत्री की विषाल कौठी हमारे सामने है। मलाल बाबू अपने लॉन की पुरानी कुर्सी में  दुबके पड़े हैं। जाडे़ की धूप सेक रहे हैं। भूतपूर्व का  मुहं  खुला है। बुढ़ापे की निराशा में  जबड़ों की पकड़ कमजोर हो जाती है। हाथ में बासी अखबार है। ऑंखें अखबार पर लेकिन दिमाग गुजरे वक्त को याद करने में लगा है। एक दिन वो थे और एक दिन आज है। मलाल बाबू ही नहीं, हर भूतपूर्व के मन में यह विचार आता है। सर्दी, गर्मी और बरसात सभी मौसम लौट कर आते हैं। पर हमारा वैभव भरा अतीत क्यों नहीं वापस आता। इन्हीं बेसिर पैर के ख्यालों में डूबकी लगाते भूतपूर्व खर्राटे भरने लगते हैं।
    भूतपूर्व कोई काठ का उल्लू तो होता नहीं जो अपने भूतपूर्व होने की वजह न तलाश  सके। ‘मेरे पिछले जन्म के पाप होंगे।’ गहरी निशवास छोड़ता, जमीन में  नजरें गड़ता भूतपूर्व एक दिन में कई बार सोचता है। बस! यही विचार भूतपूर्व को पूजा-पाठ की तरफ मोड़ता है। यदि आप को यकीन न हो तो सुबह या शाम  किसी एक भूतपूर्व को फोन करके देख लीजिए।  ‘कहॉं हैं मंत्री जी ?’ आप पूछेंगे तो जबाब मिलेगा, ‘पूजा पर बैठे हैं।’
   सुना है कि बुरे  कर्मों  में लीन व्यक्ति यमराज के हत्थे चढ़ने पर भूत योनि में रहता है। पीपल के पेड़ पर या किसी शमशान के घाट पर। लेकिन जनाब भारतीय प्रजातंत्र का  भूतपूर्व  मनुष्य की योनि में शहर  की पॉश कालोनियों में रहता है, । लेकिन अपने वर्तमान से छुटकारा पाने की छटपटाहट उसमें किसी पीपल के भूत से कम नहीं होती।
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