चचा सुखराम की स्कूली शिक्षा न के बराबर है लेकिन उनका दिमाग गजब की विश्लेषण क्षमता रखता है। यही कारण है कि उनके इर्दगिर्द पढ़ेलिखों की भीड़ सदैव रहती है। बहुत सी बातें बहुतों की समझ में नहीं आती पर इहें समझना चचा के लिए मानो बच्चों का खेल है।खचाखच भरी बैठक में कहावतों पर बात चल रही थी। चचा का कहना था का शानदार और जानदार कहावतों को गढ़ने वाले विद्वान ही नहीं होते बल्कि बिना डिग्री वाले लोग कहावतों को जन्म देकर समज को रोशनी दिखाते हैं।
इसके बाद चचा मुख्य बात पर आए। बोले- 'मैंने अपने इलाके के विधायक पिद्दीलाल से पूछा कि तुम अपनी जनता से वोट बड़ी विनम्रता से माँगते हो, षानदार जीत हासिल करते हो लेकिन कुर्सी मिलते ही ऐसे ऑंखें फेर लेते हो जैसे जानते ही नहीं।' इस पर विधायक जी बोले- 'देखो चचा ! चुनाव में वोटर हमारी बड़ी दुर्गति करता है। हम घर-घर जाते हैं, हाथ जोड़ते हैं, पैर पकड़ते हैं। किसी को चाची, किसी को माताजी,किसी को बहनजी तो किसी को बूआजी कहकर अपनी जुबान सुखाते हैं तब जाकर उनके कलेजे में समाकर जीत हासिल करते हैं।छोटीसी मषीन का नन्हा सा बटन दबाने में वोटर की मानो नानी मरती है। चचा ! अब आप ही बताओ। एक भलामानस हारने पर गाली देगा और जीतने पर मुंह फेरेगा कि नहीं। अपुन का सिध्दान्त है 'अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता।'
विधायक पिद्दी की कहावत में तर्क की कोई कमी नहीं थी सभी को भाया। चचा बोले-'एक किस्सा और सुनो। '
यह बात उच्च शिक्षा के कामयाब दुकानदार की है। कई इंजीनियरिंग कालेज का मालिक है वह। विधायक पिद्दी का यार है सो उसकी कहावत को सीने से लगाए फिरता है। एक दिन बोला कि ' मैं अपने कालेज में 7-8 हजार में मास्टर रखता हूं। ये मास्टर 4-5 वर्ष में तरक्की पाकर 13-14 हजार तक पहुँच जाते हैं। तब मास्टरों का यह वेतन मेरी आंखों में खटकने लगता है। उन्हें नौकरी से निकालने का फैसला कर लेता हूँ। कालेज से निकालने से 6 माह पूर्व उसकी कमियां निकालना, मीमो थमाना, डांटना-डपटना षुरू कर देता हूं। इतना टेंशन देता हूं कि वह खुद बखुद इस्तीफा देकर नौ-दो ग्यारह हो जाता है। उसके जाने के बाद मैं उसकी जगह 7-8 हजार पर फिर से नियुक्ति कर लेता हूं। यह सब 'अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता' के सिध्दान्त पर करता हूँ।
चचा ने अफसरों, अपने नजदीकी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, मित्रों के ऐसे अनेक किस्से सुनाए जो विधायक पिद्दी की कहावत पर अमल कर तरक्की की चौपड़ पर कुलांचें मार रहे हैं। बैठक में बैठे कई लोग पछता रहे थे कि विधायक पिद्दी को उन्होंने गुरू क्यों नहीं बनाया। चचा ने अपनी वाणी को विराम इस नैतिक सलाह से दी- 'निजी उत्थान करना है तो उठते-बैठते इस कहावत का जाप करो और मिलजुल कर समाज का भला करना है तो जैसे वैष्णों देवी के दर्षन के लिए चढ़ाई करते भक्तजन उद्धोष करते हैं 'जोर से बोलो जय माता की ', वैसे ही सुबह पार्क में और षाम को गली मोहल्लों में नारे लगाओ, 'अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता।'
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुंदर बना है व्यंग्य।
ReplyDelete