यादों के सहारे
अशोक बंसल
वृध्द होने पर इन्सान में भौतिक और पारलौकिक में भेद करने की ललक पैदा होती है. आस्था जैसे टी.वी.चैनेल भले लगने लगते हैं. वक्त काटने के लिए पूजा -पाठ में ज्यादा से ज्यादा रम जाना उसे अच्छा लगता है.सांसारिक लोगों की एकाकी लोगों के लिए यही सर्वोत्तम सलाह भी है. पर ८५ बसंत देख चुकी और छब्बीस बरस पूर्व मित्र जैसे पति का साथ हमेशा- हमेशा के लिए छोड़ चुकी कनक चाची का जीवन दर्शन कुछ और ही है. कनक चाची ने अपने पति आत्मप्रचार से दूर रहे लेखक और अनुवादक स्व० प्रकाश चन्द्र चतुर्वेदी के साथ पत्रकार शिरोमणि दादा बनारसीदास चतुर्वेदी की सेवा में वर्षों गुजारे. पति की म्रत्यु क बाद कनक चाची फिरोजाबाद छोड़कर मथुरा आ गयीं.
प्रकश चाचा के जाने के बाद पिछले २६ सालों से चाची यादों के सहारे जी रही हैंइ यादोमें फिरोजाबाद और टीकमगढ़ में लम्बे समय तक प्रवास करने वाले मामा बनारसीदास चतुर्वेदी और इतिहास में दर्ज तमाम महापुरुषों के रोचक किस्से और प्रकाश चाचा की साहित्यिक गतिविधियाँ और ठहाके वाली ठिठोलियाँ शामिल हैं. दादाजी के फिरोजाबाद के घर में क्रान्तिकारियो का आवागमन बराबर बना रहता था .चाचीजी बताती हैं कि काला पानी की सजा काटने वाले बाबा प्रथ्वी सिंह आजाद ,शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की बहिन ,शहीद चंद्रशेखर आजाद की माताजी ,शिव वर्मा आदि प्रसिद्ध लोग दादाजी के पास आते ही न थे वल्कि कई कई दिन घर में रहते थे. कनक चाची इतिहास के इन पन्नों के बीच चलती फिरती हैं ..इन यादों को चाचीजी कलेजे में समेटे हुए है. बुढ़ापे में इंसान के सठिया जाने का खतरा रहता है.चाचीजी इस रोग से मुक्त हैं.सामने वाला यदि साहित्य या क्रातिकारी आन्दोलन में रूचि रखता है तभी वह अपनी यादों के पन्नों को पलटती हैं. चाचीजी को याद है कि बाबा प्रथ्वी सिंह ने २५ साल छोटी लड़की से शादी की थी.चाचीजी बाबा प्रथ्वी सिंह की पत्नी से खूब घुल मिल गईं , दोस्ती हो गई.चाचाजी खान हैं किस्सों की.ये किस्से महान लोगों के हैं ,चाचीजी के निजी जीवन के कतई नहीं. अपनी कृशकाय काया के कष्टों का जिक्र तो चाचीजी पूछने पर भी नहीं करती.
दादाजी "विशाल भारत " (कलकत्ता ) के संपादक रहने के बाद टीकमगढ़ आ गए थे. प्रकाश चाचा ने दादाजी के कहने पर अमेरिका के लेखक हेनरी डेविड थोरो की पुस्तक 'वाल्डेन' का हिंदी अनुवाद किया . महात्मा गाँधी ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है कि थोरो ने उनके जीवन को प्रभावित किया. चाचीजी कहती है कि इस पुस्तक क अनुवाद करने के लिए प्रकाश सुबह ४ बजे जाग जाया करते थे. हिंदी के उपयुक्त शब्दों कि तलाश में शब्दकोष से माथ्थापच्ची करते करते दादाजी के साथ ठहलने निकल जाते थे. स्व० राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने दादाजी को राज्यसभा में सदस्य मनोनीत करने से पहले क्या वार्तालाप किया , सी .एफ. एंड्रूज और गांधीजी के साथ दादाजी के अनेक किस्से आदि चाचीजी को याद हैं. एक दिन मैं चाचीजी की मेज पर रख्खी थोरो की 'वाल्डेन' पढने के लिए मांग लाया .पुस्तक वापस करने में मुझे देरी हो गयी. चाचीजी ने मोबाईल पर तकादा करना शुरू कर दिया. मैं जब पुस्तक लौटने गया तो चाचीजी ने भावुक स्वर में कहा कि ''अशोक ,बुरा मत मानना .अलमारी में रख्खी ये पुस्तके और हाथ के लिखे कागजों के पुलंदे तुम्हारे चाचा की धरोहर है.मैं इनके बीच चलती फिरती हूँ ,जीती हूँ तो मुझे अपार सुख मिलता है. इन यादों के सहारे मैंने २६ बरस ख़ुशी ख़ुशी गुजार दिए.
_______________________________________-अशोक बंसल,१७ बलदेव पूरी एक्स.मथुरा मो.9837319969,
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