मेलबर्न आजकल
मेलबर्न से २५ किलोमीटर दूर बसे उपनगर पॉइंट कुक में डेरा डाले मुझे लगता है की यहाँ सरकार और जनता एकदूसरे के पूरक है.दोनों में किसी बात का कोई टकराव नहीं. सरकार जीवन को बेहतर बनाने में लगी है तो तेज कदमो से सड़कें नापते गोरे काले सभी सरकार के बनाए कायदे कानूनों का पालन करने में मगन हैं .
डेड से तीन करोड़ रू. की लागत वाले वातानुकूलित मकान और शानदार बाजार देखकर मन में विचार आता है की हमारे देश के गाँव की ज़मीन सुनिओजित शहर विकसित क्यों नहीं कर पाती? गावों के लोग शहर की ओर क्यों पलायन कर रहे हैं? यहाँ ऐसा नहीं. शहर की हर सुविधा यहाँ है तो कोन मेलबर्न शहर के मल्टीस्टोरी इमारतों में रहेगा? रेल,बस, कोलोनाजेशन सब कुछ प्राइवेट लेकिन सरकार के बनाए कानूनों के तहत. इन कानूनों
का पालन कराने में सरकार की इच्छा शक्ति और ईमानदारी साफ़ झलकती है.ऐसा नहीं की शरारती और अपराधी किस्म के लोग यहाँ हे ही नहीं .ये अपराधी लोग सरकारी डंडे से जरूर डरते होंगे तभी पॉइंट कुक जेसे दर्जनों उपनगरों में लकड़ी और काच के बने मकानों में लोग बेखोफ रह रहे हैं.
पॉइंट कुक की आबादी २५ हजार से अधिक नहीं. फिर भी माल्नुमा संस्कृति से लेस बाजार में सरकारी लाब्रेरी है ,पूरी तरह आधुनिक.इस लाब्रेरी में हिंदी की एक अलमारी देखकर मन प्रफुलित हुआ .गिरिराजकिशोर और पुष्पा मैत्री की किताबों को छूकर देखा. मालूम करने पर पता चला की इस इलाके में हिंदी पाठकों की संखा अच्छी खासी है. सन २०३० में सरकार ने इस उपनगर की आबादी ५० हजार से ज्यादा करने की ठानी है.
अमन चेन और प्रदुषण मुक्त इस उपनगर के माल में यह देखकर अचरज हुआ की हर भारतीय दूसरे लोगों की तरह हर कायदे क़ानून को अपना रहा था लेकिन अपने देश में इसी भारतीय को क़ानून को टेंगा दिखाने में मजा आता है.बंद करता हूँ यह कहकर .......जेसा देश वेसा भेष
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