Tuesday, July 26, 2011

Melbourne ----3


परदेश तो परदेश है.
 इंसान ने जब से आँखें खोली है वह जीवन को बेहतर और बेहतर बनाने की दिशा में संघर्षरत है.यूरोप ,अमेरिका और आस्ट्रेलिया एशिया के बाशिंदों को सदेव से आकर्षित करते रहे है.साधन संपन्न लोग अपने बच्चों को विदेश भेजकर अपने लोगो में विशिष्ट दर्जा प्राप्त करते रहे है. गांधी नेहरु के वक्त में परदेश जाना बहुत मुश्किल था. आजकल अपेक्षाकृत सरल है. इसी कारण में बार बार मेलबर्न आ जाता हूँ. अपने हर प्रवास में में मेलबर्न की सड़कों को नापता हूँ ,यहाँ के म्यूजियम को निहारता हूँ ,गोरे और उनकी मेमो-बच्चों की जीवन शेली को जानने की कोशिश करता हूँ .साथ ही कल्पना करता हूँ की यह सब वातावरण हमारे देश में हमारी सरकारे क्यों नहीं दे पाती? ६ दशक से अधिक निकल गए देश को आजाद हुए.
\ जुलाई के मध्य में में जब यहाँ आया तब अपने यहाँ बाबा रामदेव,अन्ना हजारे, सुरेश कल्मारी ,और यु पी में चुनाव की तेयार करती राजनीतिक पार्टियों और राजनीत को व्यपार समझने वाले नेताओं को छोड़कर आया था. इन्ही की चर्चाएँ अखबारों की सुर्खियाँ थीं.
यहाँ. आकर मुझे अजीब सा लगा.मेलबर्न में सब कुछ शांत.टंड जरूर पर सुखद .सड़कें साफसुथरी.और इन पर तेज तेज कदमों से अपने अपने काम पर जाते लोग.जेसे दिल्ली का कनाट प्लेस वेसी ही भीड़ भाड मेलबर्न के फेडरेशन स्कायर पर मिलेगी .यह स्थान मोज मस्ती और सांस्कृतिक गतिविधिओं का अदभुत केंद्र है .ऐसा नहीं सरकार के पास समस्याएं नहीं .मजेदार और सुखद बात यह है की सरकार जनता की मांग उठने से पहले जनता की असुविधाओं पर ध्यान देना शुरू कर देती है.में विक्टोरिया पार्लियामेंट में एक घंटे का प्रश्न काल में गया था. पानी ,बिजली और शिक्षा ,ट्रेफिक आदि मुद्दों चर्चा के दोरान सदस्यों की हास्य और व्यंगात्मक शेली से संसद गूंज रही थी .नेहरु के युग में. हमारे यहाँ ऐसा होता था. एस सन्दर्भ में तरकेशारी सिन्हा का नाम याद किया जा सकता है. लेकिन अब यह सपना है.पुस्तकालय  और समुदायक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सरकार का ध्यान पूरा पूरा है .इन जगहों पर जाकर तबियत खुश हो जाती है.इलाज और दवाएं चाहे कितनी आधुनिक और बिना मिलावट के क्यों न हो यहाँ बीमार होने पर अपने वतन की याद रह रह कर आती है.बीमार व्यक्ति को डाक्टर से वक्त लेने में १५-१५ दिन इन्तजार करना पड़ता है. चिकितसकों तथा नर्सों  की कमी  है. सरकार इन्हें बसाने में वरीयता दे रही है.
गत वर्ष मेलबर्न में हुए नस्ली हमलों ने भारतियों को हिला दिया. यहाँ आने वाले भारतीय छात्रों की सखा में गिरावट आ गयी.सरकार की विशव स्तरपर छवि धूमिल हुई,साथ ही अर्थ व्यवस्था पर असर पड़ा.  परिणामस्वरूप सरकार ने सख्त कदम उठाय और गोरे हमलावरों पर लगाम लगाईं.
मेरी मुलाक़ात  बहुत से भारतीयों से हुई .कोई १० साल से है तो कोई २-३ सालों से. यहाँ की साफ सुथरी जिन्दगी से  सब खुश हैं.जीवन स्तर अछा है लेकिन पूरी जिन्दगी बसने के नाम पर हिचकी लेते नजर आते है. अपनी अपनी  जुबान में कहते  है की अपनों की याद आती  है.कुछ दिनों काम कर लें फिर वापस तो जाना ही है.गोरे शिष्टाचार में किसी से कम नहीं  पर इनके मन में क्या है नहीं मालुम .चाहे पी .आर  ले लो या सिटिजनशिप परदेश तो परदेश है.

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