ओ0पी0आई
सत्तर बसन्त देख चुके चचा के सर के बाल सन जैसे सफेद हैं। एक दिन एक पड़ौसी ने हवेली की ढयोड़ी पर बैठे चचा के बालों की सफेदी की वजह पूछी। चचा बोले- 'बेटा ! ये बाल धूप में सफेद नहीं हुए। चचा की बात पडौसी की समझ में नहीं आई। उसने अपने मित्र को पूरा वाक्या सुनाया। मित्र चचा की फितरत से वाकिफ था। उसे मालूम था कि पिछले एक साल से चचा ने अपनी बातचीत का तौर-तरीका बदल लिया है। वह सीधे-साधे सवालों के आड़े तिरछे जबाव देते हैं। मित्र ने पड़ौसी को समझाया कि चचा का मतलब है कि उनके सन जैसे बाल अनुभव रूपी ज्ञान की निशानी है। अर्थ समझ कर पड़ौसी चचा की बुध्दि का कायल हो गया।
बुध्दि के मामले में चचा ने एक भी क्षेत्र में गच्चा नहीं खाया है। पड़ौसी को बातचीत में मजा आने लगा। उसने दूसरा सवाल दागा, 'चचा तुम बीजेपी में रहे, कांग्रेस में गए, माया और मुलायम सभी के आंगन में टहल आए हो। आजकल किस पार्टी में हो! चचा तपाक से बोले, 'ओ.पी.आई.।'
बम्पर गैद की तरह चचा की बात पड़ौसी के सर के ऊपर से फिर निकल गई। पड़ौसी बेचारा फिर सकते में। वातावरण में चुप्पी छाई रही। पड़ौसी अंग्रेजी के तीन अक्षर ओ
पी.आई. से क्या बनता है का अर्थ लगाने में माथापच्ची करता रहा लेकिन उसकी अक्ल जबाब दे गई। चचा ने तब ओ.पी.आई. का अर्थ बताया 'ओपोरच्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इ्रंडिया।' यानी 'भारत की अवसरवादी पार्टी।'
कामयाबी का फंडा बताते चचा ने कहा राजनिति में एक की कंठी लेने से जिन्दगी नहीं चलती। जैसा देष वैसा भेष की नीति सबसे अच्छी है। अपुन सभी दलों में टहल आए है। सभी दलों का एक जैसा हाल है। कुछ नेता मजे में हैं और ज्यादातर लोग घुटन भरी जिन्दगी जी रहे हैं। ये बडे नेता अपने कार्यकर्ताओं को पार्टी के प्रति वफादारी का पाठ पढाते नहीं थकते। सार्वजनिक मंच पर ये नेता विरोधी दल के नेताओं की बधिया उधेड़कर एक दूसरे के जानी दुष्मन होने का संदेष जनता को देते हैं। लेकिन निजी जीवन में रात के अंधेरे में ये नेता आपस में ऐसे मिलते हैं जैसे चोर-चोर मौसेरे भाई। इन नेताओं के झूठ-सच का सही अनुमान वोटर नहीं लगा पाता। झूठ पकड़ा न जाए इसके लिए इन नेताओं को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। नेताओं को हिसाब रखना पड़ता है कि पहले क्या कहा था।
बस इन्हीं सब झंझटों को देखकर हमने अपनी नई पार्टी 'ओ.पी.आई.' बनाई है। हमारी पार्टी के कुछ प्रमुख नारे हैं- 'अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता', 'चढ़ते सूरज को प्रणाम', 'डूबते जाहज को अलविदा', 'तैरते जहाज में छलांग', आदि , दल बदल कानून का विरोध करना अपुन की पार्टी का प्रमुख ऐजेन्डा है।
ओ.पी.आई. के संविधान की खूबी यह है कि कोई भी सदस्य किसी अन्य दल में मनचाहे दिनों के लिए कभी भी आ जा सकता है। वह दूसरे दल में भले ही रहे, ओ.पी.आई.से उसकी सदस्यता समाप्त नहीं होगी। चचा ने अपनी इस पार्टी की एक अन्य विशेष्ताभ बताते हुए कहा कि अन्य दलों के लोगों को मुंह में राम बगल में छुरी की नीति अपना कर दो-दो मुखौटे अपने पास रखने पड़ते हैं। लेकिन इसके ठीक विपरीत ओ.पी.आई. के सदस्यों को अपने असवरवाद को छुपाने के लिए किसी ढ़ोंग की जरूरत नहीं।
इंदिरा गांधी जैसे कद्दावर वृक्ष के गिरने के बाद धरती हिली। मसलन, दंगे फसाद हुए, बाबरी मस्जिद टूटी, गोधरा कांड हुआ, गुजरात में मोदी की प्रयोगशाला बनी। इन सब कमों को अंजाम देने बाले बेचारे नेता 'मैं नहीं' 'मैं नहीं' कहते घूम रहे हैं।
'ओ.पी.आई.' पार्टी की नीति-रीति एक है यानि दो टूक जुबान। ईमानदारी इसकी आधाराश्ला है। हम जो हैं वो हैं। दुराव-छपाव की कोई जरूरत नहीं। तभी तो पार्टी कार्यकर्ता अपने दिन की श्रूआत इस नारे से करते हैं - 'गर्व से बोलो ओ.पी.आई'।
चचा के मकान पर ओ.पी.आई. का झंडा लहर-लहर लहरा रहा है। ओ.पी.आई. पार्टी के झंडे की तरफ बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एसपी, सीपीएम, सीपीआई आदि दलों के झंडे ललचाई नजर से देख रहे हैं। चचा के झंडे को मांगने वालों की भीड़ लगातार बढ़ रही है।
Thursday, March 18, 2010
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