Thursday, March 18, 2010

बूढों की बैठक






देश के सीनियर सिटीजन का दर्द मुझे भी सालता है। सरकार एवं अनेक स्वयंसेवी संस्थाएे बूढ़ों की हिफाजत के लिए विचार गोष्ठियां आयोजित कर रही हैं। अनेक समाजसेवी बूढ़ों की सेवा के नाम पर गेस्ट हाउस खोलकर धनोपार्जन कर रहे हैं। ये समाजसेवी अपने गेस्ट हाउस को 'ओल्ड एज होम' का नाम दे गणतन्त्र दिवस पर पद्मश्री जैसे सम्मान पाने की जुगत में हैं।

पुराने जमाने के ऋिषियों-मुनियों ने इंसान की 100 वर्ष की उम्र मान इसे चार भागों में बांटकर जीने की कला का संदेश दिया था। हमारी सरकार ने इसे दो भागों में बांट दिया है। साठ से पहले और साठ के बाद। सरकारी नीतियों के षिकार बने इन बूढ़ों को अपना रिटायरमेन्ट दूध में गिरी मक्खी को निकाल देना जैसा लगता है। जवानी में ये बूढ़े सोचते थे कि साठ साल के होने पर शायद कोई स्पेशल कमजोरी आती होगी, तभी सरकार रिटायर करती है। लेकिन साठ साल के अन्दर बूढ़े अपने षरीर के अन्दर के रसायन पूर्ववत काम करते देखते हैं। उन्हें सरकार की इस नीति पर कभी क्रोध आता है तो कभी हैरत होती है। उन्हें लगता है कि उन्हें फिजूल में रिटायर कर दिया गया। बस इसी विचार के बाद बूढ़ों और जवानों में जबरदस्त खाई खुद जाती है।

पिछले दिनों मेरी गली के चार बूढ़ों ने अपात बैठक बुलाकर तय किया कि सरकार और नौजवानों से रोने-धोने, गिड़गिड़ाने आदि से न तो कोई सुविधा मिलेगी और न ही बाकी दिन कटेंगे। इस पहाड़ जैसी जिन्दगी को अपने तरीके से काटना होगा। चारों बूढ़े इस आइडिया पर एक मत हुए कि शाम के वक्त सभी एक साथ घर के आगे सड़क पर बैठेंगे। तीन-चार घण्टे मौज-मस्ती में गुजरेंगे। बीच-बीच में चाय-चुल्लड़ होगी। आदर्श,नैतिकता जैसे उबाऊ विषयों पर आपस में बातचीत नहीं होगी पर यदि कोई राहगीर भूले भटके अपने पास कुछ पल को ठहर जाऐ तो आदर्ष, नैतिकता, महाभारत, रामायण, वर्तमान समय में मूल्यों का अवमूल्यन आदि विषयों पर ही अपनी बातचीत केन्द्रित की जाऐगी। चारों बूढ़े बैठक में लिए फैसलों पर बेहद मगन है।

तिवारी जी चारों बूढ़ों में सीनियरमोस्ट हैं। उनके घर के बाहर लगे गुलमोहर के वृक्ष के पास शाम होते ही चारों बूढ़े आ धमकते हैं।

आज पहली बैठक थी। बैठक के सामने सड़क के दूसरी ओर रोजमर्रा के सामान की किराने की दुकान है। कालोनी वालों को इस दुकान से बहुत सुविधा है। महिलाऐं अपनी 'कम्फर्टेबिल ड्रेस' में हल्दी, नमक, धनियाँ, बिस्किट, ब्रेड आदि खरीदने आ जाती हैं। बूढ़ों को यह दृश्ये बहुत भाता है।

किसी महिला को सामान खरीदते देख बूढ़े अपना समान्य ज्ञान बढ़ाते रहते हैं। किसकी बहू है, किस शहर की है, कितने बच्चे हैं आदि की जानकारी आपस में बाट लेते हैं। त्यागी जी के बेटे की बहू है, चार साल षादी को हो गए पर बाल-गोपाल कोई नहीं जैसी आपसी जानकारी पर बूढ़े हैरत में पड़ जाते हैं। वे कोई ऊॅंच नीच होने की श्ंाका जाहिर करते हैं। एक बूढ़ा इस चर्चा को विराम देने की नीयत से कहता है कि 'पत्नी से पता करूॅंगा'। इसी तरह अनेक प्र' बैठक में अनुत्तरित रह जाते हैं। वे अगले दिन सुलझा लिए जाते हैं।

कभी-कभी ये बूढ़े सामान लेकर सामने से गुजरती महिला से घर-गृहस्थी से जुडे सवालों के बहाने बतिया भी लेते हैं। बेहद सम्मान और विनम्रता से पेश्‍ आती ये महिला इन सीनियर सिटीजनों के रोम-रोम को कुछ क्षंण के लिए पुलकित कर देती हैं।

कहते हैं कि हमारी खुश्‍ी हमारे कामों को गति देती है। यही वजह है कि बूढ़ों की राह गुजरती महिलाओं से बतियाबन कर खीसें निपोरने की आदत पड़ गई है। बूढ़ों के दाँतों और घुटनों के दर्द मानो उडनछू हो गए हैं। कब्ज भी जाती रही है। लेकिन इन बूढ़ों को मोहल्ले की महिलाओं के कष्ट का तनिक भी अाभास नहीं। 'कम्फर्टेबिल ड्रेस' में किराने का सामान खरीदना इन महिलाओं के लिए अब दूभर हो गया है। ये महिलाऐं शाम को बूढ़ों की बैठक जमे, इससे पहले ही सौदा खरीदने या पड़ौसन से बतियाने जैसा काम निपटा लेती हैं। बैठक के वक्त महिलाओं ने सड़क पर चलना बन्द कर दिया है ा महिलाओं की अनुपस्थिति बूढ़ों को अन्दर ही अन्दर कचौट रही है। यह दर्द घुटनों के दर्द से बड़ा है पर कहें तो कैसे कहें और किससे कहें !

महिलाओं के नदारत होने पर बूढोंं ने राह गुजरते बच्चों से दोस्ती करने की सोची। उन्होंने खेलने जाते बच्चों से देश्‍-दुनिया के सामान्य ज्ञान के सवालों को पूछना श्‍ुरू किया। एक दिन तिवारी जी ने एक बालक से बडेृ दुलार से बात करनी चाही तो वह 'मम्मी बुला रही कहकर अदृश्यी हो गया।
इस बालक ने अपने दोस्तों को बूढ़ों की बैठक की खबर दे दी। नतीजा यह है कि बूढ़े अब सन्नाटे में बैठे हैं। गली का दुकानदार भी बूढ़ों को तिरछी नजर से देखने लगा है। उसकी दुकानदरी आधी रह गई है।

आजकल मेरी गली के सीनियर सिटीजनों को गठिया, दांत का दर्द और कब्ज ज्यादा सताने लगी है। ये बूढ़े अब बात कम कर, बाबा रामदेव की कपालभाती और अनुलोम-विलोम में ज्यादा रूचि ले रहे हैं।

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