Friday, March 19, 2010

एक विधायक की आत्मकथा






यह दुनिया बडी निर्मम है। इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई और किसी ने 'उफ्' तक नहीं की। देश्‍ के किसी कोने से एक भी संवेदना संदेष भेजे जाने का कोई समाचार मीडिया वालों ने इतनी खबर दी कि राज्यपाल लोटा सिंह ने लुढ़का दी। घटना विहार में घटी लेकिन वैचारिक लुढ़का-पुढ़की यू.पी. के विधायक रामलाल के मन में हो रही है।

सब तरफ भाई-भाई का नारा लग रहा है। हिन्दी-चीनी भाई-भाई, अफसर-अफसर भाई-भाई। व्यापारी एकता जिन्दाबाद। षिक्षक अपनी मागें मनवाने के लिए एक दूसरे का हाथ थामे खड़े रहते हैं फिर विधायक-विधायक भाई-भाई क्यों नहीं हो सकते हैं। वे चाहे किसी प्रान्त के हों या किसी दल की टिकट पर जीते हों। कहलाते तो विधायक ही हैं। वेतन, भत्ता, सुविधा, खाने कमाने के अवसर तो एक जैसे हैं। टनाटन सफेदी जैसी एक

जीवन षैली है, एक सोच है, एक मकसद है और वह है 'स्व-सेवा'। राष्ट्र ही विधायक है, विधायक ही राष्ट्र है। बेचारे षपथ भी न ले पाए थे कि लुढ़का दी। चुनाव के तत्काल बाद विधानसभा भंग हो जाती तो भी ठीक था। हरी झण्डी दिखाने में दिल्ली ने राज्यपाल को तीन माह लगा दिए। दो-तीन महीने में जो मीठे सपने देखे वह तो न देखते। विधायक रामलाल भावनाओं में बहे जा रहे हैं। उनका विचार मंथन जैसे-जैसे गंभीर होता है उनके सीने की बांई तरफ टीसें बढ़ती जा रही हैं।

बड़ी मुष्किल, थुक्का फजीहती और मारा-मारी के बाद टिकिट की जुगत लगाओ और फिर ऐरेगैरे, नथ्थू गैरों के सामने हाथ जोड़ वोटों की भीख मांगो। वोट पड़ने से पहले की रात सारे ऐब करो, तब जाकर चुनाव जीतो। गले में माला पड़ गईं, विजय पर्व मन गया। गहरी नींद से जगे तो मालूम पड़ा कि लोटा सिंह ने बड़ी निर्ममता से लुढ़का दी। भगवान ऐसा बुरा हाल किसी विधायक का न करे। विधायक बने भी और न भी।

कहावत है कि पका आम ही धरती पर गिरता है लेकिन बिहार में विधानसभा चुनावों में जीते प्रतिनिधि बिना भाव, वेवक्त और बिना पके ही धड़ाम से टपक पड़े। पहली बार विधायक रामलाल ने पके आम वाली कहावत को चरितार्थ नहीं चकनाचूर होते देखा।

धरती बिहार की हिली है लेकिन हिचकोले यू.पी के विधायक रामलाल को लगे हैं। संवेदनश्‍ील हैं बेचारे। दहशत सी पैदा हो गई है कलेजे में। सत्ता में हो या विरोध में, मुख्यमंत्री अच्छा करे या बुरा, सरकार 5 वर्ष चलनी चाहिए। अब पार्टियों में समझदारी विकसित हो रही है। सभी ने आपस में गुप्त समझौता कर लिया है। -'सरकार गिराने की धमकी देते रहो, गिराओ मत।'

विधायक रामलाल के मन में संभावित होनी अनहोनी का चित्र घूम ही रहा था कि बचपन के मित्र ने उनके कमरे में प्रवेश किया। दु:खी आत्मा रामलाल का लटका मुंह देख मित्र बोले, 'रामलाल जी ! किशन चंदर की पुस्तक 'एक गधे की आत्मकथा' आपने पढ़ी है क्या ! यदि नहीं पढ़ी तो पढ़ लो। इसी शैली में एक विधायक की आत्मकथा लिख डालो। हम मदद करेंगे आपकी। पुस्तक में ईमानदारी से विधायकों की किस्में, उनकी कार्यश्‍ैली, जीवनषैली, उनके अनुभव आदि का विवरण लिख देना। पुस्तक 'बैस्ट सेलर' बनेगी।

विधायक रामलाल को मित्र का सुझाव पसन्द आया। वह पुस्तक का मसौदा तैयार करने में जुट गए हैं। यदि बिहार की तरह राज्यपाल यू.पी. में भी लुढ़का दें तो कोई चिन्ता नहीं। एक लेखक के रूप में रामलाल की प्रतिष्ठा तो बनी रहेगी।



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