Sunday, March 28, 2010

अभिनन्दन बनाम श्राध्द






चचा सुखराम के दिमाग में एक गजब का विचार कौंधा है। वह अपना अभिनन्दन ग्रन्थ खुद ही तैयार करने में जुट गए हैं। ग्रन्थ की मोटी-मोटी बातें उन्होंने चाची के साथ बथुआ का परांठा खाते-खाते तैयार कर ली हैं। ग्रन्थ 'कलरफुल' होगा, बढ़िया कागज और पृष्ठों की संख्या भी भरपेट। तीन खण्डों में बटे 'सुखराम अभिनन्दन ग्रन्थ' में कृतित्व और ‘श्‍हर के इतिहास का विस्तृत रोजनामचा होगा।

चचा पैंसठ के लपेटे में हैं। जिन्दगी के लम्बे सफर में चचा का सामाजिक योगदान और बहुआयामी व्यक्तित्व किसी से कम नहीं है।

खबरची पुराने हैं वे। मुहल्ले में चाकू चला नहीं अखबार वालों को खबर देने में चचा ने कभी देर नहीं की। धीरे-धीरे अखबार वालों के खास बनते ही चचा मौखिक सूचना देने के स्थान पर खुद ही लिखने लगे और पत्रकारिता के पायदान पर पैर जमा दिए। शहर की सभा, सोसाइटी, कवि गोष्ठी में अग्रपंक्ति में चचा सदैव बैठते रहे हैं।

26 जनवरी की बात है। बच्चों के स्कूल में मुख्य अतिथि नहीं आए। आकाश में बंधा तिरंगा फहराने को मचल रहा था। धोती कुर्ता जाकेट में अग्रपंक्ति में डटे थे सुखराम।

प्रिंसीपल को इससे बढ़िया दूसरा स्वतंत्रता सैनानी दिखाई नहीं दिया। माइक पर नाम पुकारते ही चचा उठे और झंडे की डोरी खींच दी। सलामी देने में चचा को असीम आनन्द की अनुभूति हुई।

चचा की कल्पना की गति जेट विमान से तेज है। झंडे की डोरी खींचते ही चचा स्वतंत्रता सैनानी बन गए। उन्हें नहीं मालूम है कि उनकी तीन पीढ़ियों में कोई जेल गया हो या किसी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ नारेबाजी की हो। लेकिन कल्पना के रथ बैठे वे सन् 42 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में शरीक हो गए। थाने का घिराव किया। पुलिस ने डण्डे बरसाए। चचा के दाऐं टखने पर चोट का निशान है। चचा को याद है कि यह निशन बचपन में साइकिल से गिरने का है। चचा को अब यह निशान सन् 1942 का बताना पड़ रहा है। स्वतंत्रता सैनानी जो हैं। चचा ने योजना बना ली है कि अभिनन्दन ग्रन्थ के व्यक्तित्व वाले खण्ड में यह सूचनाऐं पाठकों का ज्ञानवर्ध्दन करेंगी।

चचा टेंशन में हैं आजकल। हमने दबी जुबान से पूछा 'चचा! आप 'सुखराम अभिनन्दन ग्रन्थ' की तैयारी कैसे कर रहे हैं ?' चचा बोले 'भतीजे ! तुझसे कुछ नहीं छुपांऊंॅगा। कुछ लेख तो खुद ही लिख लिए हैं। कुछ मित्रों से लिखवा रहा हॅू। लोगों को मेरे बारे में याद नहीं रहा सो विस्तृत बायोडाटा छपवा लिया है। एक लेख तुमको लिखना है। तुम मेरे सामाजिक व मानवीय गुणों को रेखांकित करो। जैसे-सड़क पर पड़े केले के छिलकों को फेंकने और किसी अन्धे की बांह पकड़ सड़क पार कराने की मेरी पुरानी आदत। मेरे विनम्र स्वर और गांधी भक्त होने को हाईलाइट करो। मेरे संपर्कों में गांधी, नेहरू को छोड़कर दूसरे नेताओं से मेरे रिस्तों का हवाला दे सकते हो। तुम लिख दो .......... मैं एडिट कर लूॅगा।'



चचा ने बकायदा 'अभिनन्दन ग्रन्थ समिति' बनाई है। लेटर हैड छपवाए हैं। चचा चन्दा करने में माहिर हैं। सो उगाही भी चल रही है। चचा के कदमों में गजब की तेजी है।

कुंऐ में पैर लटकाए बैठे चचा सुखराम और अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित‍ करने के विराट सपने के लिए की जाने वाली उनकी अटूट मेहनत को देख मैं हैरत में हॅू। अचानक पूछ बैठा, 'इतना श्रम क्यों - किसलिए ?' चचा गहरी निश्वा स छोड़ते दयनीय स्वरों में बोले, 'पिछले दिनों सुनामी और फिर कशमीर में हुई बर्फबारी ने कलेजे में धुक-धुक कर दी है। यकीन होने लगा है कि पृथ्वी पर बिगड़ते संतुलन से गुस्साई प्रकृति काली माँ बन गई है। क्या मालूम कल कौन सा घर दब जाए, किसकी इहलीला समाप्त हो जाए। ऐसे में बेहतर है अपना श्राध्द खुद कर जाओ। भतीजे ! अभिनन्दन ग्रन्थ की योजना इसी श्राध्द की एक कड़ी है।' मैं निषब्दं चचा को टुकुर-टुकुर निहार रहा हूँ।





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