विदेशी विश्वविद्यालयों का आगमन
उच्च शिक्षा का विस्तार स्तर की कीमत पर
अशोक बंसल
उच्च शिक्षा के कल्याण के लिये मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा देखे जा रहे सपनों का देश में उच्च पदस्थ बुद्धिजीवी स्वागत कर रहे हैं। ‘विदेशी विश्वविद्यालय बिल’ को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद माना जा रहा है कि इस लुभावने बिल को संसद में कम्यूनिस्टों के विरोध के बाबजूद मंजूरी मिल जाएगी। देश में विदेशी शिक्षा संस्थानों को न्यौत कर उच्च शिक्षा को अन्तरराट्रीय स्तर का बना देने का विचार चार वर्ष पुराना हैं लेकिन तब कम्यूनिस्टों के प्रबल विरोध के बाद बात आगे नहीं बढ़ सकी थी। गत वर्ष बिल के पुराने स्वरूप में कुछ जोड़-बाकी कर इसे नए सिरे से तैेेेयार किया गया था ा सत्ता के शीर्श पर बैठे लोग शिक्षा क्षेत्र के विदेशी मेहमानों के स्वागत के लिए पलक पाँवडे बिछाने को तैयार हैं।
विदेशी विश्वविद्यालय बिल के लाभ गिनाते कपिल सिब्बल का कहना है कि अब बढ़िया शिक्षा के लिए स्वदेशी छात्रों (एक वर्ष में करीब एक लाख साठ हजार छात्र विदेश जाते हैं) को यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया नहीं जाना पड़ेगा। इससे विदेशी मुद्रा बचेगी। देश में सरकारी और निजी क्षेत्र के उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इससे शिक्षा का स्तर भी बेहतर होगा यह बिल संचार क्षेत्र में आई क्रान्ति से बड़ी क्रांति साबित होगा। बिल के प्रशंसकों का कहना है कि वर्तमान में 18-24 वर्ष के नौजवानों का सिर्फ 9 प्रतिशत ही उच्च शिक्षा केी ओर अग्रसर हो पाता है। विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद बढ़ती जनसंख्या को उच्चशिक्षा के रास्ते सुलभ होंगे, शिक्षकों को रोजगार मिलेगा, अन्य देशों के छात्र हमारे यहाँ पढ़ेंगे। इससे विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ेगा। यानि बिल एक और लाभ अनेक।
सच्चाई यह है कि बढ़ती जनसंख्या को देख विभिन्न क्षेत्र के व्यापारियों ने तकनीकी और प्रबन्धन कालेज दुतगति से खोले हैं। विगत एक दशक में अकेले उत्तर प्रदेश में 500 से ज्यादा तकनीकी और प्रबन्धन कालेज खुले हैं।
होटलनुमा इमारतों में चल रहे इन संस्थानों की शिक्षा के शोचनीय स्तर पर विद्वानों की दो राय नहीं हैं। इन संस्थानों से डिग्री प्राप्त कर निकले हजारों इंजीनियर और एम.बी.ए बेरोजगारों की कतार में जा बैठे हैं।
उच्चशिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की लालसा वाले मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने बिल में विदेशी विश्वविद्यालयों पर इस आश्य से अंकुश लगाने के इन्तजाम किए हैं ताकि शिक्षा के स्तर में गिरावट न आए। ऐसे अनेक अंकुष मौजूदा षिक्षा के स्तर को गिरने से रोकने के लिए पहले से बने हैं लेकिन आई आई टी और आई आई एम संस्थानों को छोड़कर अधिकांष षिक्षा संस्थान बिना महाबत के हाथी जैसे अपने मद में मस्त हैं ा
यह कहना गलत न होगा कि बीस वर्षो में उच्च शिक्षा का अच्छा खासा विस्तार हुआ है।स्वतन्त्रता के समय भारत में मात्र 20 विश्वविद्यालय और 500 महाविद्यालय थे। आज तकनीकी व प्रबधन संस्थानों की संख्या हजारों में है। इन संस्थानों को संचालित करने और इनके स्तर को बरकरार रखने के लिए सरकार के पास 13 नियामक संस्थाऐं हैं। क्या ये संस्थायें अपना दायित्व भलीभाँति निभा पा रही हैं? असीमित अधिकार वाली ये संस्थायें भ्रष्टाचार की चपेट में हैं। यू0 जी0 सी0 और अखिल भारतीय तकनीकी संस्थान, जैसी संस्थायें शिक्षा के स्तर पर लगाम न लगा शिक्षा व्यापारियों से मधुर रिश्ते कायम करने में तल्लीन हैं। यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा गठित ज्ञान आयोग ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के नियमन के लिए एक स्वतन्त्र नियामक आयोग की स्थापना का सुझाव दिया है। शिक्षा को सही रास्ते पर लाने में नाकामयाब रही ये नियामक संस्थाऐं अपने देश की विदेशी शिक्षा पर कैसे लगाम कस सकेंगी, यह प्रश्न भी गौरतलब है। विश्वविद्यालयों में कुलपति जैसे गरिमामय और अकादमिक उत्कृष्टता वाले पद पर राजनेताओं के हस्तक्षेप ने शिक्षा के स्तर को चौपट किया है। विश्वविद्यालय और महाविद्यालय ज्ञान के केंद्र न होकर राजनीति के आखाड़ों में तबदील हो गये हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि सरकार के पास सब कुछ होते हुए भी उच्च शिक्षा के इन पुराने संस्थानों में सुधार क्यों नहीं हो पा रहा। ऐसे में विदेशी विश्वविद्यालय हमारे देश में कुछ चमत्कार करेंगे, यह सोचना बेमानी होगा।
कपिल सिब्बल ने कहा है विदेश के अन्तरराष्ट्रीय स्तर के शैक्षणिक संस्थान को ही यहाँ विश्वविद्यालय खोलने की इजाजद दी जाएगी। प्रस्तावित विल यदि कानूून में तबदील होता है तो यह कल्पना करना भी बेमानी है कि लन्दन के आक्सफोर्ड और भारत में खोले गए आक्सफोर्ड की षिक्षा एक जैसी होगी।
विदेशी शिक्षा संस्थान पिछले अनेक वर्षो से भारत में डेरा डालने के सपने बुन रहे हैं ताकि अधिकाधिक धनोपार्जन किया जा सके। ‘न्यूयार्क यूनिवर्सिटी पोली’ के प्रेसीडेन्ट जेरी हल्टिन ने कहा है कि अबूधवी में हमारे विश्वविद्यालय की संरचना सर्वोच्च है। उनकी नजर अब भारत पर है।इस विश्वविद्यालय के साथ अमेरिका के 800 कालेज संबद्ध हैं। जेरी का कहना है कि उन्हें भारत में अपार संभावनायें हैं। जाहिर है ‘अपार संभावनाओं’ से जेरी हल्टिन का तात्पर्य शिक्षा के व्यवसाय से है न कि ज्ञान रूपी किरणों से देश को अलोकित करने से।
‘विदेशी विश्वाविद्यालय बिल’ को संसद के पटल पर रखने से पूर्व हमारी कोशिश मौजूदा विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को चुस्त-दुरूस्त करने की होनी चाहिये। शिक्षा व्यापारियों के मुनाफे पर अंकुश लगा कर, विश्वविद्यलयों को राजनीति के शिकंजे से मुक्त कर अकादमिक हस्तियों की पहचान कर तथा शिक्षा की नियामक संस्थाओं में आसन जमाए दलालों को बेदखल कर ही उच्च शिक्षा के स्तर को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है। अन्यथा विदेशी विश्वविद्यालय हमारे देश में शिक्षा की मँहगी दुकानें ही साबित होंगी।
Wednesday, May 12, 2010
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