Monday, May 10, 2010
उपजाऊ जमीन के काँटे
अशोक बंसल
1840 में आस्टेªलिया की धरती ने सोना उलगना शुरू किया। हुकूमत करने वाले गोरे ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ की स्टाइल में जगह-जगह ‘खुल जा सिमसिम’ कहते घूम रहे थे। दुनिया भर में, आस्टेªलिया में सोना निकलने की खबरें पहुँची। अनेक देशों के मजदूर हाथों में कुदाल और फावड़े ले आस्टेªलिया जा पहुँचे। कई स्थानों पर मौजूद पहाड़ों को खोद खोदकर मजदूर सोना निकालते। गोरी सरकार इसे खरीदकर और फिर जहाज में लादकर लन्दन पहुँचा देती। यह क्रम 1900 तक चला।
‘गोल्ड रश’ नाम से मशहूर इस दौड़ में चीनियों ने जबर्दस्त बाजी मारी। सन् 1850 में मेलबर्न से सौ कि0मी0 दूर बेलारंट की पहाड़ी से सोना खोदकर निकालने वालों में चीनियों की संख्या बीस हजार थी। अपने काम में माहिर और मेहनती चीनियों से गोरे लोग दूरी बनाकर ही नहीं रखते थे बल्कि ब्रिटिश सैनिकों की मदद से वे चीनियों के टेण्टों में घुसकर लूटपाट और मारपीट भी करते थे। चीनी डरे नहीं, डटे रहे।
आस्टेªलिया में आज चीनी लोगों का अपना एक अलग संसार है। आर्थिक जगत में चमकते चीनी हर पर्यटक को चहकते-दमकते दिखाई देते हैं। राजनीति में भी वे बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। 150 वर्ष पूर्व गोरों द्वारा चीनी समुदाय पर किए गए हमले अब इतिहास की विषयवस्तु है।
दो वर्ष पूर्व मैं मेलवर्न की सड़कों पर चौकड़ी भरते हुए आस्ट्रेलिया के इतिहास को जानने के लिए संग्रहालय दर संग्रहालय भटकता रहता था। यहीं मैंने जाना कि इस अद्भुत धरती के मूल निवासियों (एब्रोजनीज) को अंग्रेजो ने चुन-चुन कर कैसे मारा और उनकी लाखों की संख्या हजारो में कर दी।
आज मेलबर्न की इन्ही सड़कों पर भारतीयों पर होने वाले हमले, लूटपाट और हत्या ने मुझे जबर्दस्त धक्का पहुँचाया है। आस्टेªलिया की सरकार ने संग्राहलयों में गोरों द्वारा मूल निवासियों पर किए गए भीषण अत्याचारों को बड़ी ईमानदारी से दर्शाया है। इस ईमानदारी को देख मैं आस्ट्रेलिया की सरकार के प्रति श्रद्धानत था लेकिन आज भारतीय छात्रों पर होने वाले गोरे नौजवानों के नस्ली हमलों को ‘लूटपाट की साधारण घटना’ कहकर मामले की गंभीरता को कम करके आंकना आस्टेªलियाई मंत्रियों के लिए कितना उचित है?
63 साल की आजादी में हमारे देश के राजनैतिक कुप्रबन्धन ने नौजवानों को भटकाव के रास्ते पर ला पटका है। सिर्फ 20 फीसदी लोगों के लिए ‘देश सोने की चिड़िया’ है, बाकी के लिए जीने के लिए जुगाड़ करना ही जीवन है। ऐसे में नौजवानों में पलायन की प्रवृत्ति बढ़ी है।
अन्य देशों के मुकाबले आस्ट्रेलिया बसने के लिए उपयुक्त जगह है। खान-पान, रहन-सहन, वेतन आदि सब कुछ बढ़िया। 27 लाख आबादी वाले अकेले मेलबर्न में 70 हजार भारतीय हैं। आस्ट्रेलियाई सरकार को मानव संसाधन की बहुत जरूरत है। अतः मेलबर्न की आबादी 2030 तक 50 लाख करने का लक्ष्य रखा है। पर्थ, कैनबरा, एडिलेट, सिडनी, मेलबर्न कहीं भी बसो, स्थायी निवासी बनने पर जमीन खरीदों तो रियायत, बच्चे पैदा करने पर भी पुरूस्कार।
मैंने मेलबर्न में भारतीय लोगों को ‘बल्ले-बल्ले’ करते देखा। ‘क्या से क्या हो गए’ गाते देखा। कुल मिलाकर स्थायी वीजा लेकर आस्टेªलिया में बसने वाले भारतीय संपन्नता की मंजिल तय कर रहे हैं, साथ ही पराए देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं। अपनों से हजारों मील दूर रहकर आस्टेªलिया के विकास में सहयोग करने वाले भारतीयों पर होने वाले लगातार हमलों को आस्टेªलिया की सरकार फिर गंभीरता से क्यों नहीं ले रही, यह सवाल मेरे मानस को उद्वेलित करता है। एक भारतीय कर्टूनिस्ट ने अपने एक कार्टून में विक्टोरिया पुलिस को नस्लवादी संगठन ‘कू क्लाक्स क्लान’ का सदस्य दर्शाकर पुलिस के निकम्मेपन को रेखांकित करने की कोशिश की तो आस्ट्रेलिया की सरकार ने भारतीय मीड़िया को संयम बरतने का पाठ पढ़ा दिया। जब हम एक दूसरे के पूरक हैं तो सच को स्वीकार करने में देरी क्यो?
आस्टेªलिया के दो-दो माह के दो प्रवास में मैंने अनुभव किया है कि रोटी रोजी की जुगाड़ में गए भारतीयों के पैर आस्टेªेलिया की धरती पर अब अंगद के पैर बन चुके हैं। ऐसे में बेगुनाह छात्रों पर गोरों के हमलों से दहशत पैदा करने की कोशिश नाकाम सिद्ध होगी, बिलकुल वैसे जैसे 150 वर्ष पूर्व सोने की तलाश में आए चीनियों पर किए गए सुनियोजित हमलों के बाद चीनी भागे नहीं बल्कि ज्यादा मजबूत होकर वहीं बस गए।
प्रेषक: डॉ. अशोक बंसल 17, बल्देवपुरी एक्सटेंशन, मथुरा-281004, मो0 09837319969
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